Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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आदिॐकार अगम अपार प्रवचन सार, महा बीज पंच पद गर्मित जाणिए । सान ध्यान परम निधान मुखथान रूप, सिद्धि बुद्धि दायक बनूपए बखाथिए । गुण दरियाव भव जल निघि माहे नात्र, तत्वको दिखाव हिये ज्योति रूप ठाणिए । कोनो है उच्चार प्राद आदिवाथ ताते वाको, चितानंद प्यारे चित्त अनुभव प्राणिए ॥ १ ॥
अन्तहंस यो सुमात्र धार कीजो गुण अंगीकार, पन्नग सुमाव अक ध्यान से सुयोजिए । धारके समीरको सुमाव ज्यू सुगंध याकी, ठौर ठौर माता वृन्द में प्रकाश कीजिए । पर उपगार गुणवंत श्रीनति हमारी, हिरदै मैं धार याकुथिर करि दीजिए । चिदानंद केवै अरु सुणवै को सार एहि, जिण प्राणाधार नर भव लाहो लीजिए ॥ ५२ ॥ प्रति-प्रतिलिपि
[अभय जैन ग्रन्थालय ] (१८) सवैया बावनी । पद्य ५६ । रचयिता-बालचंद्र ।
आदि
अकल अनंत ज्योति जाणी है यनेक रूप, असे इष्ट देवकू समरि सुख पावनी । हृदय कमल जम्) अति ही .. ..सा सुनत सब संत महावनी ॥ सुगम सबोध या देखें ही ने बुद्धिं बरै, होत सब सिद्धि दुर बुद्धि की नसावनी । .............ति कवि कवित्त की नमन के श्रानंदकु करति चंद बावनी ॥ १ ॥
इह विधि बावन वरण अधिकार सार, विविध प्रकार रची रचना बनाइकै । बुद्धि रिद्धि सिद्धि को अपार पंथ जानौ याते, भूलि परि सोधिये सुकवि मन लाइकै । विनयप्रमोद गुरु पाठक प्रसाद पाइ, निज मति चातुरी सो सुजन मुहाइकै । अवसर रसको सरस मेघमाला सम, बालचंद्र बावनी को परम प्रभाइक ॥ ५६ ॥ इति सवैया बंध यावनी पं० बालचंद विरचिता संपूर्ण । लेखनकाल-१८वीं शताब्दी । प्रति-पत्र ४ पंक्ति १७ । अक्षर ६० साइज १०॥४॥
[स्थान-अभय जैन ग्रंथालय ]