Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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दोहाएक विलंमि सत्रह शतक १५०० यक सुदिवस बसंत ।
संवतसर गुन अष्टमू १८३५ एथ्यो प्रन्थ श्रीमंत ॥ वाला
' जे मानवी शास्त्र में प्रवीन अध्यात्मज्ञानमै निपुण परंस प्रबोष ते विमुख तिनके निमित्त क्रष्णदत्त मिश्र या ग्रन्थ के बहाने अनुभव का प्रकास प्रकट करते हैं
( इनके प्रत्येक श्लोक देकर उसका हिन्दी में पद्यानुवाद है-)
निकसे स्वागी सब बहिर पूरे अन्ध बनाय । ........ ." अाशिष दये राजा को सुखपाय ॥५॥ घासीराम सुत जुगतमणि भाखारच्यौ बनाय । चूको होय कहुँ कहु देहु सुधर समझाय ॥६६॥ जान राव रामा सरस मुनि जन के शिरताज । देग तेग ते बरन कयौं निष्कटंक बलराज ||७|| महाराव जसवन्त श्रम तिनसुत करता राज । दिसि २ बरणो सुजस जिन बड़े गरीब निवाज ||८|| महाराव जसपन्त की पहिले हुती निदेस । रचौ तिवारी नाटकै रचौ न तामैं लेस ॥६॥ सम्वत् अठारासै छत्तीस मुक सत्रह स ताफ । कातिक बदि रवि पंचमी धन्द दिवारी लेख ॥१०॥ पूरण की-हों अन्ध यह जानै उचिम शान । बांचे नासै मृदफ्न अन्त होय निर्वान ॥ मांगत घासीराम दछिना महाराव प्रभु पास । मुख सो चाहत हैं वसो विट्ठल प्रभु के पास ॥