Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( १९४)
फियों अठाइस वर्ष लों, दन्छिन ब्रज गुजरात । ताने कीनो अन्ध यह, सब पिगल सरसात ॥ ५ ॥
शार्दूल बक्रीडित छंदहीरा खाने यही मही महिं रही कोई कहों की कहीं । तामें नग बडो जु कोउ एत हेमें नीका ग्रही । तोऊ रन की जाति बज्रमयता नोहेरी सो जानहीं । का जाने अहिरा चरायत बछरा जो घास में सोवहीं ॥६॥
प्रथ प्रशंमा, दोहाबहुतेर पिंगलनको, करके मनमें स्पर्श । बुधजन पाछे देखियो, यही पिंगलादर्श ॥ १ ॥ जदपि अमूल्य बमन रतन, भूषन पहिरो कोइ । तदपि धारसी में दिखे, बिन संतोष न होइ ॥ २ ॥ पिंगल बहुत पढो बटो, बुद्धि सौ बुध कोइ । तदपि पिंगलादर्शबिन, अतुल तृप्ति ना होइ ॥३॥ भावे तो यह एक ही, पढो पिंगलादर्श । देखो पिंगल अोर सब, होइ न यह उत्कर्ष ॥ ४ ॥ मिस्त्री की प्रति मिष्टता, शुनिकें जानि न जाइ ॥ ५ ॥ वायें ने बानी परे, फिर पूधिबे कि नाइ ॥ ५ ॥ निजुर प्रजवासी अब, गुजरातो यह तीन ।
मोक्ष सो भाषा मिलित, अंथ चंद में कोन ॥ ६ ॥ इति कवि हीराचंद कृते पिंगलादर्श ॥ प्रस्तारादि वर्णनं नाम पंचमं दर्शनं ।। ५॥ ममातोयं पिंगलदर्शः ।। संमत् १६२६ का || मिति फागणवदि लिषतं गुलाब सहल ब्राह्मण || लिषायतं महतावजी गाडण || गांव गुदाइवास का ठाकर बेटा भाईदानजी का ।। लिषतं बिसाहु मध्ये ॥
पत्र सं०७१, प्रति पत्र पंक्ति १८ प्रति पंक्ति अक्षर १४, यंत्र कोष्टक आदि संयुक्त । गुट का साइज ८४६
[सीतारामजी बालव संग्रह]