Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(२०४)
इति श्री समुद्र प्रकास सिद्धान्ते विद्या विलास चनुष्य दिकायां वर्ग रि० समाप्त मिति ॥ कुल पत्र ५.
पत्र में, ग्रंथ अपूर्ण । अंतिम पंक्ति इस प्रकार__"तालू रोग पिण नव सर्वथा नव विध वली कपाल नी वृषा होठ रोय भेदे में पाठ कंठरोग अष्टादश पाठ ५ ॥ मादि
दहा त्रासावरी = ॥ ६॥ श्री गुरुभ्यो नमः श्री भारत्यैनमः ॥
सकल स सुक्खदायक सकल, जीव जंतु प्रतिपाल । नाम ग्रहण बाधित फलत, टलत सकल दुख जाल ॥ १ ॥ श्रीगोडी फलवद्धिपर, श्रादिक तीरथ जास । पार्श्व प्रभू पृथिवी प्रसिद्ध, पूरण वांछित श्रास ॥ २ ॥ पंच बग्ण दे नाग कू, कीयो धरण को बंद । जादव सैन्य जरा हरण, प्रणमं जगदानंद ॥ ३ ॥ तास वदन ने उपनी, सरसति सरस सुर्माण । ताको ध्यान धरों रिद, जिम कारज चढे प्रमाण ॥ ४ ॥ सगुरु जिनेश्वसूरि पद नायक जिगणुचंदसूरि । नाके चरण कमल नम, धर चित पाणंद पूरि ॥ ५ ॥ गनि उपकार नगी रिदै, धरी प्राण चित चूप । रचौं येद्य के काज को. वैद्यक ग्रन्थ अनृप ॥ ६ ॥ वैद्य ग्रन्थ पहिलो बहुत, हे पिण संस्कृत वापि । तातह मगध प्रबोधउं, भाषा ग्रंथ बम्बाणि ॥ ७ ॥ वाग्भट मन चरक, फनि मारंधर श्रात्रेय । योग शतक धादिक वली, वैद्यक प्र-भ अभेय ॥ ८ ॥ तिन सविहुँन को मथन करि, दधि हैं ज्यु पृतसार । स्यों रचिहुँ सम शास्त्र तें, वैद्यक मारोद्धार || ti परिपाटी सवि वैधकी, श्रामनाय सशुद्धि । बैद्य चिंतामणि चोपई, स्वर्दू शास्त्र को बुद्धि ॥ १०॥