Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( ३६ ) पद संग्रह | रचयिता - ज्ञानसार
श्रादि
अन्त
( १४७ )
होरी काफी
भाई मति खेलै सू.
माया रंग गुलाल मूं । भा० ।
माया गुलाल गिरन तें
मंदी यांख अनंते काल सू ॥ भा० ॥ १ ॥ जल विवेक मर रुचि पिचकारी, त्रिरके सुमति सुचालसू | मा० ।
उधरत म्यान नयन तै खेले, ग्यानसार निज ख्यालसू ॥ मा० ॥
राग
'यारे नाह घर नि गोही जीवन जाय ।
पिय विनया व पीहर वाम कहि सखि कॅम सुहाय ॥ १ ॥ या० हा हा कर सखि पया परत हूँ, कटी नाह मनाय ।
घर मिदद सुंदर तन् भूमन, मात पिता न सुहाय || २ || प्या० इक एक पलक 'कल्प' सो वीतत, नीसामे जिय जाय | ज्ञानमार पिय श्रान मिलै घर, तौ सब दुख मिट जाय || ३ || प्या
५।। ४४ ।
इति पदं । इति श्री ज्ञानसार कृत ध्रुपद मंपूर्ण । श्रीरस्तु ||
लेखनकाल- १६ वीं शताब्दी ।
प्रति-गुटकार | पत्र - ५१
मुलतानी
८ पंक्ति-११ | अक्षर १६ से २० | साइज
( ४० ) पंच इंद्रिय वेलि ।
आदि
विशेष- अन्य कई प्रतियां मिली हैं ।
अथ पंचेद्री को वेल लिख्यते ।
[ अभय जैन ग्रंथालय ]