Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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इति नेमनाय गजीमती बारहमासो सम्पूर्णम् । प्रति-रेखता बारहमामा सम्मलित, पत्र ६, पं. १३, अ.४०
[अभय जैन प्रन्थालय] (११) बारहमासा । पा-१३ । रचयिता-वृन्द ।
अथ स्तवन लिख्यते । वसन्त राग। श्रादि
मास वसंत मधुर महि सुन्दर, लाग रह्यौ रित सुक्षरवानी । मा नीली धरा तरू एकलहकत फूलत पूर महक सुहानी । प्राणी मनोहर केसर घोर के, कंचन मुरत पूज रचानी । क्षेत्र के मास में आदि जिनेसर, पूज रचै कवि वृन्द सहानी ॥ १ ॥
इम द्वादश मास में श्रादरता 5 ए, नेह शृगार धयों मन हो । नित देव निरंजन ध्यान धरै, धन ते नर मानत अन्दर ही । सहु सुख मिले जिन ध्यावन में, नित पावत पुर्ग निवावरही ।
कवि वृन्द कहै जिन चोविस कु, सब धान परागन धावन ही ॥ १५ ॥ इति बारेमासा सवैया संपूर्ण। लेखन काल-१६ वीं शताब्दी । प्रति-गुटकाकार । पत्र ३ । पंक्ति-१०। अक्षर-५८ । साइज-६|1||
[अभय जैन ग्रन्थालय ] (१२) बारहमासा । रचयिता-केशव। आदि
सुख ही मुख जह राखिण, सिख ही सिख सुख दानि । सिखा चेपु कनौ वरनि, अपद बारह वानि ॥ १ ॥
लोक लाज तजि राज रंक, निरसक विराजत । जोई पाक्स सोई करत कहत, पुनि सहन न खाजत ।