Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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सतमिना कहि साधन थिर राजे अब करतार ।
कूट न भार न सारी कहस तीन के परकार ॥ प्रति-पं० ११३, पंक्ति १५, अक्षर ११,
[अनूप संस्कृत लाइब्रेरी] ( २०) पडऋतुवर्णन
अथ श्रीषम वर्णन दसौं दिसंत चह अवालौ प्रति प्रीषम मैं जल थल विकल अवनि सब धहरी । अमन के पुंज दोऊ श्रौचको मिले है कुंज द्रुमके वेलीनिको तकि कवि छाह गहरी । राधा हरि भूलि पल रूप के सखी सुख, रहके बटो अनुराग लहरी । नंदमा सौ लग्यो मात नादिसी सी लगि धूप सरद की राति भई जेठ की दुपहरी ॥ १॥ ग्रीष्मवर्णन पय ३१, वर्षा ६७, सरद के २५, हिमके १०+ १० + १०-६५, संवत ३३.
फूलनि के बंगला झरोखा अटारी जारी फूल की सिवारी छबि मारी रंग रंग है । फूलनि भूषण वसन तन फूलनि के फूलि रहे सावन गवर अंग अंग हैं । कुंजनि में नैन फूले नैननि में कुंज फूले सुखो मुख दिपी दुति महल अनंग है । विहारी विहारनि विहरै दिठि दरपननिरूप काय व्यू ह है भूलके दोउ संग है ॥
इति वसंत संपूर्ण । मंवत १७ ८९ वर्षे मिति फागण सुदि ४ बुधवार वि. अंत में कृषिजापचीसी मलूकचद् कुन है ६६ ४२६. प्रति- पत्र ८१, पं० ११, अ० १६, साइज ६|| ४ ||
[अनूप संस्कृत पुस्तकालय]