Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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राणा मामय एक है, जैसे सुमन सुगंध भाष मेद ने कम है, महा मूढ मति अंध ॥
भगत इगति संपत खरे, पदै सुने जो कान । लीला जुगल किशोर को, सबको करै कल्यान ॥९॥ सतरहसै चौरासिय, पाश्विन पूरणमास ।
माधोराम को इन्हें, राधाकृष्ण विलास ॥१४॥ इति श्रीदानलीला संपूर्णम् । लेखन काल-प्रति १-१६ वीं शताब्दी पंचभद्रा मध्ये काती वदी ७
प्रति-२-संवत् १७६६, मि० सु०१५ । प्रति-१, पत्र ४, पंक्ति २०, अक्षर ४०, आकार Ex॥, प्रति-२, गुटकाकार, पत्र ७, पंक्ति १८, .. ( १० ) रुक्मणी मंगल-रचयिता-विष्णुदास-रचनाकाल सं०१८३४ आदिएक पत्र नहीं।
..." रुक्मण करो सगाई। अगले शहर के लोक बुलावो, सबही के मन माइ ।
रुक्मण व्याह सुनत रस वरसत, तनमन चित्त लगाय । -
या मुख कू जाने सो जाने, विष्णुदास गुन गावे । इति श्रीरुक्मणी मंगल संपूरन । प्रति- गुटकाकार पत्र २ से २५, पं०१५, १०८ से १४, साइज ||४७
[स्थान- अनूप संस्कृत पुस्तकालय ] रासलीला-दानलीला-रचयिता- सूरत मिश्र
अथ रासलीला लिख्यते