Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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तिनके पटधर अधिक तय, मनी रायधन राउ। शील सत्य साहस मुगुन, रन भय रुद्र सुमाउ ॥ ८ ॥ पावन तिनि के पाट पति, पति साहस जस पूर । राउ प्रयाग प्रयाग से, प्रकटे पुण्य अंकूर ॥ ६ ॥ तिनिके उपले तप बली, गाजी गुन निधि गौड़। मूर शिरोमनि सहसकर, मन्द महीपति मौड ॥१०॥
लखपति जस सुमनस ललित इक बरनी अमिराम । सुकवि कनः कीन्ही सरस नाम दाम गुन धाम ॥ १॥ सुनत जास है सरस फल कल्मष रहै न कोय ।
मन जपि तखपति मंजरी हरि दरसन ज्यों होय ॥ २ ॥ अंत
इति श्री भट्टारक कनककुशलजी कृत ॥ लखपति मंजरी नाम माला संपूर्णः॥ श्री भुजनगर मध्ये जोसी कल्याण जी ॥ संवन १८३३ वर्षे पोप मासे शुक्ल पक्षे ४ तिथौ ४ सोमवासरे लिस्वि ।। पठनार्थम । वारोद रामजी || श्री रस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥ शुभमस्तु ।। श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ।। प्रति-गुटकाकार साइज ६४५, पत्र १३, पं० १३, अ-२० से २४
[गजस्थान पुरातत्व मंदिर-जयपुर ] वि०पयांक १०२ तक भुजनगर उनके राजादि का वर्णन फिर नाममाला प्रारंभ
( 2 ) सुबोध चन्द्रिका । पद्य १०२१ । फकीरचन्द । सं. १८०० चै. सु. ३,
प्रादि
बाद पुरष को ध्यान करि कहौ नाम की दाम । एक बरन के अर्थ बहु सुफल कर समधान ॥१॥ सो भरि नाम प्राचार्य कृत दुती नामकी माल । ताहि के परमान कछु बरनौ जुगति रसाल ॥२॥ अधिक और कवि पुस्खन मुनि के कियो प्रमान । सो प्रमान मा लाय के हैं महा बुधवान ॥ ३ ॥ सन्द सिंधु सब मध्य के रच्यो सुमाषा बानि ।। अर्थ अनत इक बरन के द्वादश अनुक्रम बानि ।।४।।