Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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देखत सुरनर मोहै होइ, इसी मांति दान बहु दी ।
घरि १ बायो सुरसी राह, नराणवास कहै उबाहि ॥ इति छिताइवार्ता समाप्ता।
खे-संबस १६४७ वर्षे माधववादि ६ दिने लिखतं चेला करममी साहरामजी पठनार्य ।
प्रनि-गुटकाकार साइज १०||४६।पत्र ६ से ३६,
पं०१७, १०४०, स्थान-बृदद ज्ञान भंडार बीकानेर वि० पद्यांक ६४ के बाद धंक नहीं दिये। बीच में पाक नहीं दिये पत्रांक १३,१६, १७, नहीं पत्रांक २६ एक तरफ ही लिखित
(४) नंद बहुतरी (दोहा ७३ ), रचयिता-जसरास (जिनहर्ष ) सं० १७१४ कानी.. वील्हावास' आदि
सबे नयर सिरि सेहरो, पुर पाडासी प्रसिद्ध । गढ मद मंदिर सपत भुइ, सूसर भरी समृद्ध । सूर वीर मारण बटल, परियण कंद निकद । राजत है राजा तहां, नंदशह धानंद ॥ तास प्रधान प्रधान गुण, वीरोचन वरीयाम । एक दिवस राजा चल्यो, ख्याल करण भाराम ॥ ३ ॥ कटक सुमट परिवार स्यौं, बल्यो राइ र पाल । वस्त्र देखि तहाँ सूकतै, ऊमी रमो छछाल ॥ ४ ॥ इक सारी तिहि वीचि परी, ममर करत गुजार | नृप चितैया पहिरि है, साइ पदमणि नारि ॥ ५ ॥
खुसौ मयो नृप सुणत ही, बहुत बधारू तुझ । सामि परी तु खरो, साचो सेवक मुझ ॥ ७० ॥ ताहि दीयो परधान पद, बाजी रही मुठाह । भरि मरदन मान्यो बहत, प्राक्रम अंग उछाह ॥ १ ॥