Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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ले० १७८२ मगसिरवदी ६, दिन पं० प्रवर मनोहर लिखतं साथी केशवजी पठनी। प्रति पत्र ३, पं०१५, अ०४६
(स्थान-अभय जैन पुस्तकालय ) ( २३ ) मूरख सोलही । रचियता-लालचंद । पद्य १७ श्रादि- अथ मूरख सोलही लिख्यते
कुबुधी कदे न श्रावइ मन सा काम की, घुस राति मन माहि जउ तिमना दास की । मली बुरी कछु बात न जाणइ श्राप था, बरु मुरख सिरु सींग कहा होइ नव हत्था ।।
समझो चतुर सुजाण. या मूरख सोलही । किवरी विरत विचार, सुकवि लालचन्दै कही । समझ धारिख एह, कुसज्जन संग था।
अरु मृरख सिरु सींग, कहा होइ नवहत्था ॥ १७ ॥ प्रति- गीदड़ रासो वाल पत्र १ में लिखित ।
( दानसागर भंडार)