Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( २०८)
गइ पुरंदर करे ल भाई तासौ मित्रनि वात चलाई ।। नाटक ज्ञानानंद सुनाऊं, देहु मुखनि अरु तुम मुख पानी ॥
सब मै अपु मै सबै, सुनो भेद कछु नाहि । ज्यों स्यो तनु मनुधर रहैं धरस्यौं तत मन मांहि ।
या अंत के दाके अर्थ को जानु होई सोई जानियो । इनि ज्ञानानंद नाटक, लछीराम कृतं समाप्तम् । संवत १७२७ वर्ष वैसाख, पत्र १४ पं०८०४१
[अनूप संस्कृत लाइब्ररी] ( ३ ) प्रबोध चन्द्रोदय नाटक । घासीराम । सं. १८३६ । श्रादि--
पाथ पबोध चन्द्रोदय नाटक लिख्यतेलंबि कपोलनी कला हरन कर कदंब गेलंत्र । नमन चरण सेब मम् (श्व ) क जे प्यारे जगदंबा ॥ हरिहर सरसुति कर नमन सदानन्द गुनपूर । मो सार ताप हाक महत विघन निवारक भूर ॥ जिनकी कृपा कटाय ते, होत ग्यान परकास । तो ता त्याचे गुरुचरण, सकल गुननि की रास ॥ वीनती धामोराम की, सुनौ व्यास भगवान । उद्घाटक फाटक हृदय, दीजै नाटक सान ॥ ____ + x +
___ कवित्त महाराव वर्णनबोलनि के समै देवगुरुसै विराजमान दान देवै काज राजतने अंशुमंत है । जुद्ध न के समथ महाधीर गम्भीर मन जीतवार जंग कै अनंत को हनंत है ॥ धीरवंत सोभत है महावीर घासीराम भागवंत माह सोभै महाभागवत है । धर्म एसे नीतवंत चिरंजीव राज राज, तिनके समान महाराव जसवंत हैं ।