Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(१४१ )
अन्त
ताके सीश हैं विनीत, पर स्रोत स विनीत, साधू रीति नीति सरी मुन अभिराम है । आत्म ज्ञान धर्म घर, वाचक सिद्धान्त वर, श्रति उपत चित्र, ग्यान धर्म नाम है ॥ ताके शिष्य राजहंन, राजहंस मान मर, धान उद्यमादि गुन गाम धाम है । वासी देवचन्द की ऐ अन्य वर, अपनी चेतनराम खेलियो को ठीम है | arati सहाय प्रति, दुर्गदास शुभ चित्त । समभावन निज भित्रको, कोनो ग्रन्थ पवित्त ॥५
थशास्त्र के श्रता विनके नाम से. ३१
श्राम सभाव मिठु मल्ल को पहारी दीनो, भैरू दास में दास मूलचन्द जान है । ग्यान लेख राज व पारस स्वभाव घर, सोम जीव तत्व परि जाकी सरधान है || ज्ञानादिनिन मंत, अध्यातम ध्यान मत, मूललान थान वासी श्रावक सुजान है । ताकी धर्म प्रोति न यानि के अन्य कोनों, गुन पर जाय घर जामे द्रव्य ज्ञान है ॥५॥
श्रव्यानम सैलि मरस,
ते जायें (गे) अन्ध यह,
गुन लवन पहिचान के
चिदानंद चि(दरूप) मम,
परमातम नम्र शुद्ध घरी,
यह मोह में नव भ
जे मानत सो जैन । ग्यानामृत स्म लैन ॥६०॥ हेय वस्तु करी हेय । शुद्ध ब्रह्म श्रदेव ॥ ६१ ॥ शिव मारग ऐहीज | यही ग्रन्थ को बीज ॥६२॥
सम्वत् कथन दोहा
७
विक्रम सम्वत् मान यह सब के भेद । शुद्ध संजैम अनुमासिके, काय को छेद ||६३||
ता दिन या पोथी राखौ, व
अधिक संतोष । सुभ वासर पूरन मई, प्रमिनेश्वर मोया ||६४||
लेखन काल - १६वीं शताब्दी
प्रति - - प्रन्थ ७०० । पत्र १६ । पंक्ति १५ । अक्षर-५२ साइज + ४||
[ अभय, जैन प्रन्थालय ]