Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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अन्त
जैसे जिनके सब जस श्रवदात। किनसे कह्या ने जात | सब दरियाव के जलकी सनाई aftara | श्रसमान का कागद बनवा । सुर गुरु से बाबु लिखवै की हिम्मति करे। सो थकि जात है। इक उपमान के उरे । जिस बात में सरस्वती ह का नर या सारा, तौ और nairas का क्या विचारा | पर जिन जिन की जैसी उक्ति श्ररु जैसी बुद्धि की शक्ति | तिन माफक ट्रक बहुत का ही चाहिये । as a कविश्वरु की उक्ति देखि हिम्मत हार बैठे रहिये या सब गच्छराजन के महाराज गच्छाधिराज श्री जिनलाभ सूरि द्रवित कही गुन गाया । अपनी कविता का पुनि स्वामी धर्म का फल पाया।
( १२७ )
दोहा
श्रविचल जा गिर मेरुल, श्रहिपति सायर इन्द |
कागम तां राजम करो, श्रीजिनलाभ मृीन्द ॥ १ ॥
कीन्द्रौ गुण वस्तै सुकवि, बहुत त ति । करिये प्रभु चरती कला, जुग जुग गपति जैत ॥ २ ॥
इति श्री जिनलाभ सूरि राजानाम द्वार्यंत गुण वाचक वस्तपाल री कही । लेखन काल-वा० कुमल भक्ति गणि नाम लिखतम पंचभद्रा मध्ये संवत १२ रा पोष वदी = तिथों रविवारे ।
आदि
प्रति-१- गुटकाकार | पत्र ७ ।
पंक्ति १६ । अक्षर ३७ । साइज ६४५|| २- पत्राकार - सं० १८४२ श्र० १२ खारीया में धर्मोदय लिखित
पत्रप०१४ अ० ३८
[ अभय जैन ग्रन्थालय ]
( १६ ) जिनमुखमूरि मजलस- रचयिता - उपा-रामविजय मं० १७७२
अथ भट्टारक श्री जिनसुखसूरि री द्वावेंत मजल |
वारस रुपचंदजीकृत लिख्यते ।
श्रहो श्रात्रों ने यार बैठो दरबार । मवादी रात कही मजलस की बात । कहो काका पुलक का कौंगा राज देखें ।