Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(ग) कृष्ण-काव्य ( १ ) उछत्र का कवित्त ५७, लेखनकाल १६ वीं शताब्दी
श्रथ उछव का कवित्त लिख्यते । प्रादिप्रथम हिंडोरा के कवित्त ।
जमूना के तीर मार भई है हिंडोग्ना पै, दूर ही तैं गहगड गति दरमनु है । गांन धनि मंद मंद गावत काननि में बीच बीच वंशी प्रान पैठि परसतु है । देखि कारे द्रम कोल तान मादि दामिनी सौ, पट फहरात पीत सामा सरसतु है। हा हा भाग्न नागर पे हियो तरसत है ली, याज वा कदंब तरै रंग बरसतु है ।
कवित्त ७ के बाद फाग विहार के १२ तक, प्रीतम प्रति व्रज बलम वीन वचन के नं० १७ तक, मांझी के नं० २० तक, रास के नं० २४ तक, कृष्ण जन्म उत्सव नं० ३२ तक, लाड़िली राधे जन्मोत्सव के नं० ४२ तक, पवित्रा के १. राखी उत्सव का १, दिवारी उत्सव के नं०४७ तक। श्रीकृष्ण गिरधार्यो जी समै के नं० ५२ तक, पारायन भागवत समै का नं०५७ तक है।
अन्त
• उदर उभार सुनि पावन जगत होत, किरनि विविध लीला नंदलाल लहिये । परम पुनीत मनको कदन प्रफुलित, विमुषक मोद समा देखत हो दहिये । यह श्रुतिसार मधि नागर सुखद रूप, नवधा प्रकास रस पीवत उमहिये । तिमर अशान कलि काल के मिटायबै को, प्रगट प्रभाकर श्रीभागवत कहिये ।। ५७ । इति श्रीभागवत परायण समै के कवित्त संपूर्णम् । प्रति-गुटकाकार । पत्र-१०, पंक्ति-२०, अक्षर-२०, साइज ७५ १०,
[स्थान-मोतीचंदजी खजांची का संग्रह ]