Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
अन्त
( १५० )
बुध उद्योत सागर गणि, अपनी मति अनुसार । विधि श्रावक के व्रत तखी, टीप लिखूं निर्द्धार ॥५॥
इति श्री सम्यक मूल बारह बत टीप विवरण ऐसी विगत माफक दोष मिटाय के व्रत पाले सो परम पद कल्याया माला मालै । ऐ बारह व्रत मली रीति सेती दूषण टाली अवश्य पुण्य प्राणी करे सो मुक्ति लक्ष्मी निरंतर करें ।
इति श्री द्वादश व्रत [ टिप्पण ] विरचिते सुगम भाषायां परिडतोत्तम पाठक श्री ज्ञान सागरजी गणि शिष्य श्री उदय सागर गणिना कृता टीप सम्पूर्ण ।
अन्त
लेखनकाल - १६ वीं शताब्दी
प्रति- पत्र १४० | पीत ५० र ४२
[ मटिया जैन ग्रंथालय ]
( ४४ ) भक्तामर भाषा । पद्य- ४ । रचयिता - आनंद (वर्द्धन )
आदि
अथ भक्तामर भाषा कवित्त लिख्यते । सवस्था इगतीला ।
प्रणमत मगत अमर वर मिरपुर, अमित मुकुट मनि ज्योति के जगावना | हरत सकल पाप रूप अंधकार दल, करत उद्योत जगि त्रिभुवन पावना | इसे चादिनाथ जू के चरन कमल जुग, मुवधि प्रणमि करि कछु भावना ! मनजल परत लरत जन उधरत, जुगादि श्रानन्द कर सुंदर सुहावन ॥१॥
जगि सुवास श्रमिलान विमल तुम गुन करि गुंफत । सुंदर वरन विचित्र कुसुम वह अति सुंदर मित || धरै कंठ सूजन श्रहोनिशि यह है वर माल ! मानतुरंग पनि लहै, सुवसि लखमी सुविशाल |
भक्तामर भाषा रुचिर । पावि सुख संपद सुधिर ||४१ ||
यातम हित कारन कियो पढ़त सुनत आनंद सौ, इति भक्तामर भाषा कवितानि लेखनकाल संवत् १७१०
प्रतिलिपि - [ श्रभय जैन ग्रंथालय ]