Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(२०७)
रामसरन तिनका तनुज, जिन चरणाम्बुजदास । ताने ये नाटक रच्यो, करत कुरीति विनास ।। शब्द घरथ की चूक को, बुधजन कीजै गह । कटक वचन लख या विषय, कीजे रेचन वृद्ध ॥ कोई जीव अभिष्ट को, इक मन हरषात । तिनसे है कछु भय नहीं, करै अणुगतो बात ॥ चैत्र गुण पाही दिना, पूर्ण हुश्रा ए लेख । काय वाच ग्रह रवि मिले, सम्बतसर को देख ॥
इनि कुरीति तिमिर मार्तण्ड नाटक सम्पूर्णम् । यह नाटक लिखाया पण्डिनजी मांगीलालजी (..." क. ३ क. सं. १६ से ५५ तक । पत्र ३६ पुस्तकाकार पं. १८ अ. १८ ।
[ मोतीचन्दजी खजानची संग्रह अथ ज्ञानानंद नाटक लिख्यते-छोराम
देव निरंजन प्रथम बखानो, गहि व्योहारु गनेसहि मानौ ॥ १ ॥ बहुरि सरसुति विष्णुउ संमु, सुमिरि कयौं नाटक प्रारभ । लछीराम कवि रसविधि कही, श्ररथ प्रसंग मियो तिनि लही ॥ नाटक ज्ञानानंदु बखान्यौ, ज्यौं जाकी मति त्यौ तिनि जानों । देसु भदावर अति मुखु बासु तहाँ जोइसी ईसर दासु । राम कृष्ण ताके सुत भयौ, धर्म समुमुद्र कविता यमु छयौ । तिनके मित्र मिरोमणि जानि, माथुर जाति चतुरई खानि । भोहनु मिष सुमग ताको सुतु. वसै गंभीर सकल कला युतु । पुनि अवधानी परम विचित्र, दोऊ लछीरामसो मित्र ।
तोनों मित्र सने मुखु रहें, धनि प्रीति सब जगके कहें । प्रय छीराम वृत्तान्त कहियतु है
जमुना तीर मई इक गाऊं राइ कल्यान बस तिहि ठाँऊ । नछीराम कवि ताकै नंदु, जो कविता सुनि नासै दंदु ।