Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(११)
(२) चित्रमुकट कहानी। चित्रमुकट की बात लिख्यत ।
चौपई
नख गणपति के बहि जाये, प्रथम बीनती बनकी करिये । अलख निरंजन को है पारा, वा साहिब गुरु जानि हमारा ॥ पा कारन विधना संसारा, बहुत अन करि आप सबारा ।
दोहादिन नहीं पारो दूजिये, गनपति गहिये बाह । अन्त जानन ही दीजिये, रखिये हिवरा महि ॥
देखो प्रेम प्रीति को बानी, "चत्रमुकुट" की सुनु कहानी ।
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देखो प्रेम प्रीति की बानी, चत्रमुकूट की सुन कहानी ।
दोहाप्रीति रीति वरली कथा, तुकै पुछ सोहि । प्रेम कहानी नाव धरि, प्रगट कीनी तोहि ॥३४०॥
चौपाईचत्रमुकट था राजकवारा, नम उजीनि में सब कुं प्यारा । अनुप नम की सोमा मारी, चन्द्र कन हे राजदुलारी ॥ जिनकै पीचि पाह मब सही, जिनकी बानी लागे मोठी । विधना ऐसा जोड़ा बनाया, दोऊ मिल पन्छी जस पाया ॥
दोहासान-मूठ की गम नहीं, सुनी कर कियान । मूल-चूक छ मुभ करो, ग्यानी चत्र मुजान ॥
दुख दिखाई फिर Bख दीया, ऐसा है करतार । . नहया निरमत चाहिये, साई बुझे सार ॥