Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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प्रति-प्रति परिचय विरह शतक के विवरण में दिया गया है।
[ स्थान-अभय जैन अन्धालय ] (३) महरि शतक त्रय भाषा (प्रानंदप्रबोध ) रचयिता-नैनचंद. सं० १७८६ विजयदशमीआदि
अगनित सुख सम्मति सदन, सेषित नर सुर वृद । वह नित कर जोर करि, सरस्वति पद अरविंद ॥ कहत करन श्रापद हरन, गनपति अरु गुरुदेव । करि प्रणाम रचना रचै, भाषामय बहुभव ॥ कमधश श्रादित सम, लायनि पुन्न मुखकंद । श्री अनूप भूपेस मुत, यु घोपति ज्यु इंद ॥ करि बादर कविसं कयों, यों श्री पाणंद भूप । भाषा भर्तृहरि शतक की, करौ सवैया रूप ॥ रचना श्रम या प्रन्थ की, मुनीयो चतुर सुजान । प्रगट होत या भनतही, अमित चातुरी ग्यान ॥
वार्ता उज्जैणी नगरी के वि राजा मत हरिजी राज करतु है, ताहि एक समै एक महापुरुष योगीश्वरै एक महा गुणवंत फन-भेंट कीनी ।
___फल की महिमा कही जो यह स्वाय । मो अजर अमर होई । तब राजा ये स्वकीय राणी पिंगला कु भेन्यो । नब गणी अत्यंत कामातुर अन्य पर पुरुष ते रक्त है, ताहि पुरुष को, फल दे भेजी अरु महिमा कही वह जन वेश्या तें प्रासक्त है, तिन धाको फल दीनो, निहि समै बैश्याते फल लेके अद्भुत गुन सुनि के विचार्यो जो यह फल खाये है बहुत जीवी तो कहा, तातै प्रजापालक, दुष्ट प्राहक, शिष्ट सत्कार कारक, षट दर्शन रक्षक, ऐसो राज भत हरजी राज बहुत करै अजर अमर हू तो भलै । यौ विचारि राजा सुफल की भेंट करिनी । राजाय पूर्व दृष्ट फल देखित पाउस करिकै राजा संसार ते विरत भयो, तब यह श्लोक पदि के जोग अंगीकार कीनो। पादि
सुख स है रिझावत नाहि बसाधि स, बङ्ग सबै गुन भेद गहे हैं। प्रति ही खसे रिझावन जोग, विशेष मुनह समेद लहे है।