Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
(छ) शतक साहित्य-मूल व टीकाएँ
( १ ) अमरु शतक भाषा । पद्य १२२ । रचयिता - पुरुषोत्तम । रचनाकाल संवत् १७२० पो० ब० । कुमाऊं नरेश बाजचंद के लिए ।
भाषि
पूजै को सरवर गुननि, पूजै जाके दान गर्ने सु को, जैसो
जाहि महेसु ।
देव गनेसु || १ |
तारा बलु तौ चंद्र बलु, चंदू
तो
सभवानी मानु ॥ २ ॥ नगर कंपिला नांउ ।
जो सु भवानी होइ सुम सकल पुहमि परसिद्ध हैं. बड़े बड़े कविता (कविजन) तहां, कविताई को ठांउ || ३ || सहसकृतु पटिकै कछु भाषा कवि | पुरुषोत्तम कवि नाम है, सकल कविनि को मित्तु ॥ ४ ॥ पुरुषोत्तम कवि चाकरी, करी कुमाऊं चाह । वाज बाहदुरचन्द नृप, कौनी कृपा बनाह ॥ ५ ॥ चंदवंस अवतंस जे, कीरति प्रंस वि-साल 1 सोभए, बंड पड़े सुखपाल || ६ || ताही कुल में हैं लयो, घाजचन्द अवतार |
कूरम परबत
तंग त्याग भरू माग की, भाषतु हो व्यवहार ॥ ७ ॥
भलें मलौ मानु |
पाउस ही राजू पाउ तहाँ गेषि अंग दलों, उमराव दखिनी उठाइ यो चाहियो । बहुरि कीवार है पहार जीतेपूरव के, मिलो हो पहारसाहि सूरी जो सिपाहियो । मिनी कौ द्वारिके जारि यो नीपादौ धान, लुद बाद मारि ते कहा लौं सराहियौ ।