Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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२-प्रति २०वीं शताब्दि लिखित है। अतः अकबर रचित रोने में
संदेह है। प्राचीन प्रति मिलने से निर्णय हो सकता है। ३-इसी ( या असे ही ) अन्य की एक अन्य प्रति मा हमारे
संग्रह में है। उसका प्रथम पत्र नहीं है फिर भी बीच का हिस्सा मिलाने पर कहीं अकसा पाठ है कहीं भिन्न, पर यह प्रति करीब २०० वर्ष पुरानी है। सम्भव है ऊपर वाली प्रति में लेखक ने भाषा श्रादि का परिवर्तन कर दिया हो। दूसरी प्रति का अन्त का भाग इस प्रकार है---
"और जीमतां भला ही वात करिये। आपण दरबछिपाइय, किसी ही कु कहिये नहीं, बेटै ही सुछिपाइये । लिपाइय में दोइ बात, घटि होइ तो अपनी हलकाई, और बहुत होइ तौ लोक लागू हुवे। और से बात कही तिन माफक मनी, दुनियां भला दीसै। इति संपूर्ण ।
४-प्रन्थ के मध्य में लुकमान हकीम का भी नाम पाता है और उसको नसियत नाम का प्रन्थ भी अन्यत्र उपलब्ध है। पता नहीं इमस यह कैसी भिन्नता रखता है या अभिन्न है । दोनों के मिलने पर ही निर्णय हो सकता है।
[ स्थान-अमय जैन प्रन्थालय ] ( 2 ) व्योहार निनय-रचयिता-जनार्दनभट्ट
आदि
श्रीगनपति को ध्यान करि, पून बहुत प्रकार । कहित भालक बोध कू, अब माषा न्योहार ॥ नृप देखे व्योहार सब, द्विज पंडित के संग । धरमरीति गहि छोडि के, कोप लोम पर संग ॥
सत्रहसे सीस बदि, कातिक पर रविवार । तिथ षधी पूरन भयो, यह भाषा न्योहार ॥