Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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छक अयन ग्रह इन्दु कहि, संबत माधव मास ।
पख उज्जल रवि पंचमी, पूरन अन्य प्रकाश ॥ २२ ॥ इति श्री वैष्णव भावनादास विरचिते माखा टीका वृद्ध चाणक्ये अष्टमोऽध्याय १.८॥
प्रति-गुटकाकार । पत्र ४४ पक्कि अक्षर २५
गुटके में पहले इन्हीं टीकाकार का भर्तृहरि शतकत्रय और फिर चाणक्य मूल श्लोक और प्रत्येक श्लोक के साथ पद्यानुवाद । छ शतक
( १ ) भरतरी शतक श्लोक भाखा टीका नीति मंजरी । टीकाकारभावनादास।
श्रीगणेशायनम ॥ श्रथ भरतरी शत श्लोक भाखा टीका नोति मंजरी लिख्यते ।। श्रादि
सोरठा अमल प्रीति उर श्रानि, दामोदर पद कमल प्रति । भावना भनहिं सुवानि, नीति सतक माखा म भलि ॥ १ ॥
सवया जिनको हम प्रानप्रिया कहि चिंतत, भिन्न सदा तिनको चित है। जन औरन ते बह प्रीति करें, जन सो पुनि और हुतै रतहै । अनुराग न ता तियके नित, हमको प्रिय आनि चहै वितहै । धिक है तिय की जनको रूमनोज को, याहि कौं मोहिकों सो नित है ॥ १ ॥
दोहा सुख सौ समझत मूढ मन, अति मुख बिदुख रिभाइ । अरष दग्धि मति मन्द को, विपिन सके समुभाइ ॥ २ ॥