Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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( २१ )
जलधि उलंधि कटक लंका गड, धैर्यउ पडी लवाई ॥१॥या लूट त्रिकूट हरम सब लूटी, बेटी गढ की खाई । लपकि लंगूर काँगुरइ बइठे, फेरी राम दुहाई ॥२॥ जऊ दस सीस वीस भुज चाहर, तउ तजि नारि पराई ।
राज पदत हुणिहार न टरिहई,कोटि करऊ चतुराई ॥ ३ ॥ अन्त
केवल प्रथम पत्र अपाप्त है । ग्रंथ पदों में होने से सुन्दर संगीतमय है । पर अपूर्ण उपलब्ध है।
प्रति- पत्र १, पंक्ति १५, अक्षर ४० से ४५, साइज ||४४ एक पत्र और भी मिला है, व एक गुटके में भी कई पद मिले हैं।
[स्थान- अभय जैन ग्रन्थालय] ( ६ ) हनु ( मान )दत । पन्ध १०४, रचयिता-पुरुषोत्तम, सं०१७०१ माह व०६। आदि
श्रीगम जाके ताके बुधि बटै, जोके ताकै श्राइ । पुरुषोत्तम गहि प्रथम ही, गवरिपूत के पाई ॥ १ ॥ पुरुषोत्तम कत्रि कपिला, वासी मानिक नंदु । कृपा करै परवत-पती, बाज वहादुर चंदु ॥ २ ॥ वामन वरन हौं मने दिया कहावतु हौ । गोकरन गोतु सब तै अगाऊ को । रामु परदादो दादो गदाधर जानियतु । केपिला मैं टाऊ नाऊ मानिकु पिताऊ को । नंद नीलचंद के करी है कृपा वाजचंद् । वाही हैं अधिक हितु, हितू श्रौ वटाऊ कौ । जे सुने कवितु सोह चितु दे के बुझनु है । कौनु पुरुषोत्तमु जु, कवि है कुमाऊ क्यौ ॥ ३ ॥
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पराक्रम पुरो पौन पूत को मुनि के मन, इन्छा मइ बरनौं जिसतै राजी रामु है ! संवतु हो दस-सात सत उरू एक जहां,