Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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पीपाजी के पद १७, गुसांई रामानंदजी के पद २, आसानंदजी का पद १, कृष्णानंदजी के पद ४, धनाजी २, सैनजी १, फरीदजी का पदित नामा, भरथरी पद
लेखन काल-गुटका-संवत् १८२२ से १८२५ में लिखित पोकरणा व्यास मोहन, निरंजनी स्वामी मयाराम शिष्य भगतराम के पठनार्थ ।
[स्थान-स्वामी नरोत्तमदासजीका संग्रह ] ( ४ ) ब्रह्म जिज्ञासा । रचयिता-शंकराचार्य ( ? ) आदि
ओम् ब्रह्म श्रेक सुभ चेतन । माया चेतन । जड़माया ब्रह्म को संजोग जैसे वृच्छ की छाया। वृच्छ सर जीव माया सरजीव नाही। वृन्छ विना छाया होय नाहि । माया की अोट ब्रह्म नाहि सृझे। ब्रह्म की ओट माया नाहि सूझे। ब्रह्म माया को असी संजोग।
अरट घट का न्याह । कुलाल चक्र न्याइ ।। जम चक्र न्याइ । कीटी भ्रग न्यांइ। लोहा चंधक न्याइ । गलफी ध्यान न्याइ । । इसि ब्रह्म माया को निर्णय । पिंड ब्रह्मण्ड को विचार । परमहंस गिनान ।
इति शंकराचार्य विरचित ब्रह्म जिज्ञासा संपूर्ण । प्रति-(१) पूर्ण । पत्र । पंक्ति ८ से १२ । अक्षर २२ । साइज ||४||
(२) अपूर्ण-गुटकाकार । स्थान-प्रति (१) अनूप संस्कृत लायब्रगे।
, (२) अभय जैन ग्रंथालय।
( ५ ) ब्रह्म तरंग । रचयिता- लछीराम । पद्य ६१ । आदि
मोख लहन को मग यहै, सब तजि सेवो संत । जिनके वर प्रसाद, इजत अलख अनंत ॥ १ ॥