Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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वारह मासी साहित्य (१) नेमिनाथ राजिपती बारह मासी । पद्य १३, विनयचन्द । धादि
श्राव हो इस रीति हित सै यद कुल चन्द । यउ मोहि परमानन्द ॥ श्रा०॥ २स रीति राजल बदत प्रभूदित, सुनौ यादव राय । छोरि के प्रीति परतीति प्रिय तुम, क्यों चले रिसाय । बिहुँ और धोर घर ... ... ... ... ... ... त मैन । धरि अधिक गाट अाषाढ़ उमट्यौ, घट्यो चित्त से चैन ॥१॥
अन्त
इस मांति मन की खाति, बारह मास विरह विलास । करके प्रिया प्रिय पास चारित, ग्रयो पानि उल्हास । दोउ मिले सुन्दर गति मंदिर, भर जहाँ मति नन्द ।
मृदु वचन ताको रचन भाखत, विनय चन्द्र कवीन्द्र ॥ १३ ॥ इति श्री नेमिनाथ राजमत्यौ द्वादस मासः । प्रति :-गुटकाकार ।
स्थान :- [अभय जैन मन्यालय] ( २ ) नेमि बारह मासा । पद्य १३ । रचयिता-जसराज (जिनहर्ष) आदि
सावन मास धना धन बास, बाबास में केलि करे नर नारी । दादुर मोर पपीहा रटे, कहो कैसे कटे निशि घोर अंधारी ।।