Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
View full book text
________________
(१८८)
नाम छन्द रतनावली, याहि कहैं सब लोग । लाइक है प्रभु थ(स्तवन को,कवि हिय राखन जोग । ५ ॥ समाध्याय स्तनावली, कयों ग्रन्थ मन सूर । प्रथमाध्याय कर्म कू (कि) या गुरु लघु गन इम पूर ॥ ६ ॥ असम मात्र छंद दुतिय है, समकल छंद त्रिय जान । चोथी सम वर्नक कही, असम वर्न पंच मान ॥ ७ ॥ छठी ध्याय छंद पारसी, सप्तम तुक के भेद ।। कर पंडित या प्रन्ध मैं, मनवचन क्रमसौं खेद ॥ ८ ॥ थर्थ गुरु लघु लक्षनसंजोगादि सविंद सुनि, कहुँ होई चरनंत ।। दोघ ए गुरु जानियों, श्री लघु नाम लहंत ॥ ६ ॥
४
हिम्मखान सों अरि कपत, भाजत लैबल जिय । अरि रे हमै है संग लै बोलत, तिनकी तीय ॥
पत्रांक ८७ से १३ में पारसी छंद लक्षण के अंत में इति श्री जुगतराइ विरचिते छंदरतनावल्या पारसीवृत्त पष्टमोध्यायः ॥ ६ ॥ अथ तुकपये मतमोध्यायः ॥ ७ ॥
अन्त
इति श्रि जुगतराइ विरचित छंदरतनावल्या तुकभेद सप्तमोध्यायः ॥ ७॥ संवत सहस्त्र सात सत तीस कातिक मास शुक्ल पक्ष दीस भयो ग्रन्थ पूरन सुभ स्थान, नगर बागरो महाप्रधान
दान मान गुनवान सुजान, दिन दिन बादो हिम्मतवान । जुगतराइ कवि यह जस गायो, पढत सुनत सबही मन मायो॥ जो कुछ चूक मोहिते होई, सो अपराध क्षमो सब कोई ।
विनती सबसौं करों अपार, पंडत गुन जन लेहु सुधार ।। इति वेद रतनावली पिंगल भाषा श्री जुगतराइ कृत सम्पूर्ण ।