Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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(४५) भगवती वनिका (गद्य ) आदि
अब दोय से इकतालीस गाथा करके भगवती वनि कान्तर्गत ब्रह्मचर्य नाम मवहा ब्रत का वर्णन करते हैं तिनमैं पांच गाथा करकै सामान्य ब्रह्मचर्य कुं उपदेश है । अन्त
विषय रूप समुद्र में स्त्री रूप मगरमच्छ वसै है। ऐसे समुद्र कू स्त्री रूप मथ्छ अर पार उतर गये ते धन्य हैं। ऐसे अनुसिष्टि नाम महा अधिकार विर ब्रह्मचर्य का वर्णन दोयसै इकतालीस गाया में समाप्त किया।
इति ब्रह्मचर्य नामा महा व्रत ममान । लेखन काल- २८ मी शतानी। प्रति-पत्र ८५ । पंक्ति.-७ से १२ । अक्षर-३४ से ४२ ।
[ मेटिया जैन ग्रंथालय ( ४६ ) भरम विहंडन श्रादिअथ भरम विहंडन भाषा ग्रंथ लिख्यते ।
दोहाप्रथम देव परमातमा परम ग्यान रम पूर । पध्यो ग्रंथ अद्भुत सचिर, मरम विहंडन भूर ॥ सबहि बात मतनि की, रचि सौ सुनी अच्छेह । हिय विचार देखि तबै, उपज्यो मन सदेह ।। तब हम देशाटन करन, निकसे सहज सुमाय ।
देख चमत कृत नर तहाँ, रहते जहां लुमाय ॥ ३ ॥ (फिर मुनि मिलते हैं और प्रश्न जान कर उत्तर दे संतुष्ट कर देते हैं)
मरम विहंडन ग्रंथ को, समझै मरम अनूप । वेद पुरान कुरान कों, जान लेत सब रूप ॥ १.१॥