Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith

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Page 282
________________ ( १६ ) अशुद्ध पुठ्यो है खादिय स्वादिभ युट्यो है पृ० पं० १५४ १३ १५४ १४ १५४ १४ नवीन १५५५ ४ ७ १५५ १० १५५ १२ वादिम स्वादिम अभय जैन ग्रन्थानय वली १५७ १५५ * * १५५ वली उतहि निवल पचमी बचों वरणतु महि मुहड़ मिथ्या तन स०सं० मेती। निहां पठ्य करता " १५६ १५६ १५ १५६ २० १५६ २० १५७८ पंचमी बंचो वरणू तुमहि सुहड़ मिथ्यातम रचना सं. सेती तिहाँ पाय हरता ते लहै ० ० १५७ ० तेल है १५८ ११ १५८ नय 2 " : परिवा नुश्रा वरस करिक बद्धों क्षमा परिवानुभाव रम करिक बाछत भाषा को भिक्षा दू कडू पचने १५६२ १५६ २० १५६ २२ १५६ २३ १५६ २६ वाचत मिच्छामि दूकडू पतने

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