________________
सम्प्रदाय और धर्म ]
[ ३३
भगवान ने कहा -- चेतन का जो अविकसित या अपूर्ण रूप है, वह आत्मा है ओर जो विकसित या पूर्ण है, वह परमात्मा है । ये दोनो एक ही चेतन-व्यक्ति की दो भिन्न अवस्थाएँ है ।
● अध्यात्म और धर्म
भगवान महावीर ने आत्मा और परमात्मा की वास्तविक एकता की स्थापना की, उससे अनेक सत्यो का प्रकाशन हुआ ।
(१) आत्मा का स्वतन्त्र कर्तृत्व
(२) आत्मा का स्वन्त्र भोक्तृत्व
अध्यात्मवाद और पुरुषार्थवाद इन्ही के फल है और इन्ही के आधार पर भगवान ने धर्म को बाहरी कर्मकाण्डो से उबारकर अध्यात्म बना दिया । उनकी भाषा मे-आत्मा से परमात्मा बनने की जो प्रक्रिया है, वही धर्म है । सम्प्रदाय, वेष, बाह्य कर्मकाण्ड आदि धर्म के उपकरण हो सकते है, पर धर्म नही ।
धर्म आत्मा की ही एक परमात्मोन्मुख अवस्था है । उसे शुद्धावस्था भी कहा जा सकता है। भगवान ने कहा -धर्म शुद्ध आत्मा में स्थित होता है । इसका अर्थ है आत्मा की जो शुद्धि है, वही धर्म है । आत्मा और पुद्गल की मिश्रित अवस्था है, वह अशुद्धि है । जो शुद्धि है, वही धर्म है |
• सम्प्रदाय और धर्म
भगवान् महावीर ने तीर्थ की स्थापना की । साधना को सामुदायिक रूप दिया, फिर भी वे सम्प्रदाय और धर्म को भिन्न-भिन्न