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अस्तित्ववादी दृष्किोण ]
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ही सत्य है, शेष सब मिथ्या है । पहला द्वैतवादी दृष्टिकोण है और दूसरा अतवादी । भगवान महावीर अखण्ड सत्य को अनन्त दृष्टिकोणो मे देखने का सदेश देते थे । अनेकान्त दृष्टि से अद्वैत भी उनके लिए उतना ही ग्राह्य था, जितना कि द्वैत, और एकान्त दृष्टि से द्वत भी उनके लिए उतना ही अग्राह्य था जितना कि अद्वैत । वे अद्वैत और द्वैत दोनो को एक ही सत्य के दो रूप मानते थे । • अस्तित्ववादी दृष्टिकोण
यह विश्व अनादि और अनन्त है । इसमे जितना पहले था, उतना ही आज है और जितना आज है, उतना ही आगे होगा । उसमें एक भी परमाणु न घटता है और न बढता है । कुछ घटता-बढ़ता सा लगता है, वह सब परिवर्तन है । परिवर्तन की दृष्टि से यह विश्व सादि और सान्त है ।
यह विश्व शाश्वत है । इसमे जो मूलभूत तत्त्व है, वे सब अकृत है । सृष्टिकर्त्ता न कोई था, न है और न होगा। सब पदार्थ अपनेअपने भावो के कर्ता हैं । कुछ वस्तुएं जीव और पुद्गल के सयोग से कृत भी है । कृत्रिम वस्तुओ की दृष्टि से यह विश्व अशाश्वत भी है । मूलभूत तत्त्व की दृष्टि से विश्व शाश्वत है और तद्गत परिवर्तन की दृष्टि से वह अशाश्वत है ।
यह विश्व अनेक है । इसमे चेतन भी है। चेतन व्यक्तिशः' अनन्त है । अचेतन के पाच प्रकार है- धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल । प्रथम चार व्यक्तिशः एक है । पुद्गल व्यक्तिशः अनन्त हैं | अस्तित्व की दृष्टि से सब एक है इसलिए यह विश्व भी एक है ।