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योगी
जो एकांत, अति पवित्र और रम्य स्थल में सुखासन की मुद्रा में आसीन है, जो कायोत्सर्ग की मुद्रा में है, पैर से लेकर शिखा तक शरीर के सारे अवयव शिथिल हैं, यह योगी का लक्षण है।
योग साधना के लिए स्थान पर ध्यान देना आवश्यक है। अपवित्र स्थल साधना में बाधा पैदा करता है, इसलिए आवश्यक है मन को प्रसन्न करने वाला स्वच्छ, रमणीय और प्रदूषण मुक्त स्थान। साधना का मूल आधार है कायोत्सर्ग । जो साधक शरीर के अवयवों को शिथिल करना नहीं जानता, वह साधना के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकता ।
एकान्तेऽतिपवित्रे रम्ये देशे सदा सुखासीनः । आचारणाग्रशिखाग्रतः शिथिलीभूताखिलावयवः ।।
योगशास्त्र १२.२२
१२ जनवरी
२००६
CHERRY
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