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योग - माहात्म्य ( ४ )
योगवेत्ता मनीषियों में योग के प्रति जो आकर्षण है वह अनिर्वचनीय है। कबीर ने लिखा
ढाई अक्खर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।
आचार्य हेमचंद्र कबीर से आगे चल रहे हैं। उनका वक्तव्य है - जिस मनुष्य का कान 'योग' – इन दो अक्षरों की शलाका से नहीं बींधा गया हो, उस मनुष्य का जन्म पशु की तरह निरर्थक है ।
तस्याजननिरेवाऽस्तु नृपशोर्मोघजन्मनः । अविद्धकर्णो यो 'योग' इत्यक्षर - शलाकया ।।
योगशास्त्र १.१४
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१० जनवरी
२००६
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