________________
प्रस्तावना
१३ ऋद्धिसे ) सहस्रनेत्र बनकर देखने लगा और बहुत ही विस्मयको प्राप्त हुआ। उन्होंने कषाय-भटोंकी सेनासे सम्पन्न पापी मोहशत्रुको दृष्टि, संविद् और उपेक्षा रूप अस्त्रोंसे पराजित किया था
और अपनी तृष्णानदीको विद्या नौकासे पार किया था। उनके सामने कामदेव लज्जित तथा हतप्रभ हुआ था और जगतको रुलानेवाले अन्तकको अपना स्वेच्छ व्यवहार बन्द करना पड़ा था और इस तरह वह भी पराजित हुआ था। उनका रूप आभूषणों, वेषों तथा आयुधोंका त्यागी और विद्या, कषायेन्द्रियजय तथा दया की उत्कृष्टताको लिये हुए था। उनके शरीरके वृहत् प्रभामण्डलसे बाह्य अन्धकार और ध्यानतेजसे आध्यात्मिक अन्धकार दूर हुआ था । समवरणसभामें व्याप्त होनेवाला उनका वचनामृत सर्वभाषाओंमें परिणत होनेके स्वभावको लिये हुए था तथा प्राणियोंको तृप्ति प्रदान करनेवाला था। उनकी दृष्टि अनेकान्तात्मक थी। उस सती दृष्टिके महत्वादिका ख्यापन तथा उनके स्याद्वादशासनादिका कुछ विशेष कथन सात कारिकाओंमें किया गया है। ___ (१६) मल्लि-जिनको जब सकल पदार्थोंका साक्षात् प्रत्यवबोध ( केवलज्ञान ) हुआ था तब देवों तथा मर्यंजनोंके साथ सारे ही जगत्ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया था। उनकी शरीराकृति सुवर्ण-निर्मित-जैसी थी और स्फुरित आभासे परिमण्डल किये हुए थी। वाणी भी यथार्थ वस्तुतत्त्वका कथन करनेवाली
और साधुजनोंको रमानेवाली थी। जिनके सामने गलितमान हुए प्रतितीर्थजन (एकान्तवादमतानुयायी) पृथ्वीपर कहीं विवाद नहीं करते थे और पृथ्वी भी ( उनके विहारके समय) पद-पदपर विकसित कमलोंसे मृदु-हासको लिये हुए रमणीय हुई थी। उन्हें सब ओर से (प्रचुरपरिमाणमें ) शिष्य साधुओं