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प्रस्तावना ~~.......www.www.c......~~~~........... ............. अथवा मोक्षका जो इच्छुक है उसे 'मुमुक्षु' कहते हैं । मुमुक्षु होनेसे कर्मयोगका प्रारम्भ होता है-यही कर्मयोगकी आदि अथवा पहली सीढ़ी है। मुमुक्षु बननेसे पहले उस मोक्षका जिसे प्राप्त करनेकी इच्छा हृदयमें जागृत हुई है, उस बन्धनका जिससे छूटनेका नाम मोक्ष है, उस वस्तु या वस्तु-समूहका जिससे बन्धन बना है, बन्धन के कारणोंका, बन्धन जिसके साथ लगा है उस जीवात्माका, बन्धनसे छूटनेके उपायोंका और बन्धनसे छूटनेमें जो लाभ है उसका अर्थात् मोक्षफलका सामान्य ज्ञान होना अनिवार्य है-उस ज्ञान के बिना कोई मुमुक्षु बन ही नहींसकता। यह ज्ञान जितना यथार्थ विस्तृत एवं निर्मल होगा अथवा होता जायगा और उसके अनुसार बन्धनसे छूटने के समीचीन उपायोंको जितना अधिक तत्परता और सावधानीके साथ काममें लाया जायगा उतना ही अधिक कर्मयोग सफल होगा, इसमें विवादके लिये कोई स्थान नहीं है। बन्ध, मोक्ष तथा दोनों के कारण, बद्ध, मुक्त और मुक्तिका फल इन सब बातोंका ' कथन यद्यपि अनेक मतोंमें पाया जाता है परन्तु इनकी समुचित व्यवस्था स्याद्वादी अर्हन्तोंके मतमें ही ठीक बैठती है, जो अनेकान्तदृष्टिको लिये होता है। सर्वथा एकान्तदृष्टिको लिये हुए नित्यत्व, अनित्यत्व, एकत्व, अनेकत्वादि एकान्तपक्षोंके प्रतिपादक जो भी मत हैं.' उनमेंसे किसीमें भी इनकी समुचित व्यवस्था नहीं बनती। इसी बातको ग्रन्थकी निम्न कारिक में व्यक्त किया गया है
बन्धश्च मोक्षश्च तयोश्चहेतू बद्धश्च मुक्तश्च फलं च मुक्तः।