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प्रस्तावना
है, उसे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और उपेक्षा (परमौदासीन्यलक्षण सम्यक् चारित्र) रूप अस्त्र-शस्त्रोंसे जीता जाता है ( ६० ) । जो धीर वीर मोहपर विजय प्राप्त किये होते हैं उनके सामने त्रिलोक-विजयी दुर्द्धर कामदेव भी हतप्रभ हो जाता है (ह? ) । तृष्णा नदी इस लोक तथा परलोकमें दुःखोंकी योनि है, उसे निदो षज्ञान-नौकासे पार किया जाता है (६२) । रोग और पुनजन्म जिसके साथी हैं वह अन्क (यम) मनुष्यों को रुलाने - . वाला है; परन्तु मोह - विजयीके सन्मुख उसकी एक भी नहीं चलती (३) । आभूषणों, वेषों तथा आयुधोंका त्यागी और ज्ञान, कषायेन्द्रिय-जय तथा दयाकी उत्कृष्टताको लिये हुए जो रूप है वह दोषोंके विनिग्रहका सूचक है (६४) । ध्यान - तेजसे आध्यात्मिक (ज्ञानावरणादिरूप भीतरी) अन्धकार दूर होता है । (५) । सर्वज्ञज्योति से उत्पन्न हुआ महिमोदय सभी विवेकी प्राणियोंको नतमस्तक करता है (६६) । सर्वज्ञकी वाणी सर्वभाषाओं में परिणत होनेके स्वभावको लिये हुए होता है और अमृत के समान प्राणियोंको सन्तुष्ट करती है (६७) ।
अनेकान्तदृष्टि सती है— सत्स्वरूप सच्ची है—और उसके विपरीत एकान्तदृष्टि शून्यरूप असती है - सच्ची नहीं है । अतः जो कथन अनेकान्तदृष्टि से रहित है वह सब मिथ्या कथन है; क्योंकि वह अपना ही -- सत् या असत् आदिरूप एकान्तका ही -- घातक है - अनेकान्तके विना एकान्तकी स्वरूप प्रतिष्ठा बन ही नहीं सकती (EC) |
जो आत्मघाती एकान्तवादी अपने स्ववाति -दोषको दूर करनेमें असमर्थ हैं, स्याद्वादसे द्वेष रखते हैं और यथावत् वस्तुस्वरूपसे अनभिज्ञ हैं उन्होंने तत्त्वकी अवक्तव्यताको आश्रित