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प्रस्तावना
११ उल्लेख करके उनके बुधजन-अभिवन्द्य होनेकी सार्थकताका द्योतन किया गया है। .
(१३) विमल-जिनका शासन किस प्रकारसे नयोंकी विशेषताको लिये हुए था उसका कुछ दिग्दर्शन कराते हुए लिखाहै कि 'इसीसे वे अपना हित चाहने वालोंके द्वारा वन्दित थे' । -
(१४) अनन्तजित्-जिनने अपने अनन्तदोषाशय-विग्रहरूप 'मोह' को, कपाय नामके पीडनशील-शत्रुओंको, विशोषक कामदेवके दुरभिमानरूप आतंकको कैसे जीता और अपनी तृष्णानदीको कैसे सुखाया, इत्यादि बातोंका इस स्तवनमें उल्लेख है ।
(१५) धर्म-जिन अनवद्य-धर्मतीर्थका प्रवर्तन करते हुए सत्पुरुषोंके द्वारा 'धर्म' इस सार्थक संज्ञाको लिये हुए माने गए हैं। उन्होंने तपरूप अग्नियोंसे अपने कर्मवनको दहन करके शाश्वत सुख प्राप्त किया है और इसलिये वे 'शङ्कर' हैं। वे देवों तथा मनुष्योंके उत्तम समूहोंसे परिवेष्ठित तथा गणधरादि बुधजनोंसे परिचारित ( सेवित ) हुए ( समवसरण-सभामें ) उसी प्रकार शोभाको प्राप्त हुए थे जिस प्रकार कि आकाशमें तारकाओंसे परिवृत निर्मल चन्द्रमा। प्रातिहार्यों और विभवोंसे विभूषित होते हुए भी वे उन्हींसे नहीं, किन्तु देहसे भी विरक्त रहे है। उन्होंने मनुष्यों तथा देवोंको मोक्षमार्ग सिखलाया, परन्तु शासनफलकी एषणासे वे कभी आतुर नहीं हुए। उनके मन-वचनकायकी प्रवृत्तियां इच्छाके विना होते हुए भी असमीक्ष्य नहीं होती थीं। वे मानुपी प्रकृतिका उल्लंघन कर गये थे. देवताओंके भी देवता थे और इसीसे 'परमदेवता के पदको प्राप्त थे।
(१६) शान्ति-जिन शत्रुओंसे मजाकी रक्षा करके अप्रतिम प्रतापके धारी राजा हुए थे और भयंकर चक्रसे सर्वनरेन्द्र-समूहको जीतकर चक्रवर्ती राजा बने थे। उन्होंने समाधिचक्रसे दुर्जय