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२. अर्हत्सम्बोधन-पदावली
स्वामी समन्तभद्र ने अपने स्वयम्भूस्तोत्रमें तीर्थङ्कर अर्हन्तोंके लिये जिन विशेषणपदोंका प्रयोग किया है उनका एक संग्रह स्तवन-क्रमसे प्रस्तावनामें दिया गया है और उसके देनेमें यह दृष्टि व्यक्त की गई है कि उससे अर्हत्स्वरूपपर अच्छा प्रकाश पड़ता है और वह नयविवक्षाके साथ अर्थपर दृष्टि रखते हुए उन (विशेषणपदों) का पाठ करनेपर सहजमें ही अवगत हो जाता है। यहाँपर उन सम्बोधन-पदोंका स्तोत्रक्रमसे एकत्र संग्रह दिया जाता है जिनसे स्वामीजी अपने इष्ट अर्हन्तदेवोंको पुकारते थे और जिन्हें स्वामीजीने अपने स्वयम्भू , देवागम, युक्त्यनुशासन और स्तुतिविद्या नामके चार उपलब्ध स्तोत्रोंमें प्रयुक्त किया है। इससे भी अर्हत्स्वरूपपर अच्छा प्रकाश पड़ता है और वह नयविवक्षाके साथ अर्थपर दृष्टि रखते हुए पाठ करनेपर और भी सामने आ जाता है। साथ ही, इससे पाठकोंको समन्तभद्रकी चित्तवृत्ति और रचना-चातुरीका कितना ही नया एवं विशेष अनुभव भी प्राप्त हो सकेगा। स्तुतिविद्याके अधिकांश सम्बोधनपद तो बड़े ही विचित्र, अनूठे, गम्भीर तथा अर्थगौरवको लिये हुए जान पड़ते हैं और वे सब संस्कृतभाषापर समन्तभद्र के एकाधिपत्यके सूचक है। उनके अर्थका कितना ही आभास स्तुतिविद्याके उस अनुवादपरसे हो सकेगा जो गत वर्ष वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित हुआ है। शेष सम्बोधनपदोंका अर्थ सहज ही बोधगम्य है। एक स्तोत्रमें जो सम्बोधनपद एकसे अधिक वार प्रयुक्त हुए हैं उन्हें उस स्तोत्रमें प्रथम प्रयोगके स्थानपर ही पद्याङ्कके सपथ ग्रहण किया गया है और अन्यत्र प्रयोगकी