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समन्तभद्र-परिचय
६७ (४) वर्द्धमानसूरिने, वराङ्गचरितमें, समन्तभद्रको 'महाकवीश्वर' 'कुवादिविद्या-जय-लब्ध-कीर्ति, और 'सुतर्कशास्त्रामृतसारसागर' लिखा है और यह प्रार्थना की है कि वे मुझ कवित्वकांक्षी पर प्रसन्न होवें-उनकी विद्या मेरे अन्तःकरणमें स्फुरायमान होकर मुझे सफल-मनोरथ करे।'
(५) श्री शुभचन्द्राचार्यने, ज्ञानार्णवमें, यह प्रकट किया है कि 'समन्तभद्र जैसे कवीन्द्र-सूर्यों की जहां निर्मलसूक्तिरूप किरणें स्फुरायमान हो रही हैं वहां वे लोग खद्योत-जुगनू की तरह हँसीके ही पात्र होते हैं जो थोडेसे ज्ञानको पाकर उद्धत है-कविता (नृतन संदर्भकी रचना ) करके गर्व करने लगते हैं।'
(६) भट्टारक सकलकीर्तिने, पार्श्वनाथचरितमें, लिखा है कि जिनकी वाणी (ग्रन्थादिरूप भारती ) संसारमें सब ओरसे मंगलमय है और सारी जनताका उपकार करनेवाली है उन कवियोंके ईश्वर समन्तभद्रको सादर वन्दन ( नमस्कार.) करता हूँ।'
(७) ब्रह्मअजितने, हनुमच्चरितमें, समन्तभद्रको 'दुर्वादियोंकी वादरूपी खाज-खुजलीको मिटानेके लिये अद्वितीय 'महौषधि' बतलाया है।
(८) कवि दामोदरने, चन्द्रप्रभचरितमें, लिखा है कि 'जिनकी भारती के प्रतापसे-ज्ञानभण्डाररूप मौलिक कृतियोंके अभ्याससे-समस्त कविसमूह सम्यगज्ञानका कारगामी हो गया उन कविनायक-नई नई मौलिक रचनाएँ करने वालोंके शिरोमणियोगी समन्तभद्रकी मैं स्तुति करता हूँ।'
(6) वसुनन्दी आचार्यने, स्तुतिविद्याकी टीकामें, समन्तभद्रको