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। समन्तभद्र-भारती
इति निरुपम-युक्त-शासनः प्रिय-हित-योग-गुणाऽनुशासनः । अर-जिन ! दम-तीर्थ-नायक
स्त्वमिव सतां प्रतिबोधनाय कः ? ॥१॥ . 'इस प्रकार हे अरजिन ! आप निरूपम-युक्त-शासन हैंउपमा-रहित और प्रमाण-प्रसिद्ध शासन-मतके प्रवर्तक हैं---, प्रिय तथा हितकारी योगोंके--मन-वचन-कायकी प्रवृत्तियों अथवा समाधिके-और गुणोंके-मम्यग्दर्शनादिकके--अनुशासक हैं, साथ ही दम-तीर्थके
नायक हैं-कपाय तथा इन्द्रियोंकी जयके विधायक प्रवचन-तीर्थके स्वामी ! हैं। आपके समान फिर साधुजनोंको प्रतिबोध देनेके लिये और * कौन समर्थ है ?--कोई भी समर्थ नहीं है । आप ही समर्थ हैं।'
मति-गुण-विभवानुरूपतस्त्वयि-वरदाऽऽगम-दृष्टिरूपतः।
गुण-कृशमपि किञ्चनोदित . मम भवताद् दुरितामनोदितम् ॥२०॥ (१०५) हे वरद-अरजिन ! मैंने अपनी मत-शक्तिकी सम्पत्तिके अनुरूप--जैसी मुझे बुद्धि-शक्ति प्राप्त हुई है उसके अनुसार-तथा आगमकी दृष्टिक अनुमार-अागममें कथित गुणोंके आधारपरआपके विषयमें कुछ थोड़ेसे गुणोंका कीर्तन किया है, यह गुणकीर्तन मेरे पाप-कर्मोक विनाशम समर्थ होवे-इसके प्रसादस मंग मोहनीयादि पाप-कर्मप्रकृतियांका क्षय हो ।'
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* 'युक्ति-शामनः' इति पाठान्तरम् ॥