________________
स्वयम्भू-स्तोत्र .
| नोकर्म तथा राग-द्वेषादि भावकर्मरूपी त्रिविध कर्म-कालिमासे सर्वथा रहित ।
होकर आवागमनसे विमुक्त हो चुके हैं, वे ( उक्त गुण-विशिष्ट)
नाभिनन्दन-चौदहवे कुलकर (मनु) श्रीनाभिरायके पुत्र--श्रीवृषभमें देव-धर्मतीर्थके आय-प्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर श्रीआदिनाथ भगवान्--मेरे
अन्तःकरणको पवित्र करें-उनके स्तवन एवं स्वरूप-चिन्तन के प्रसादसे. मेरे हृदयको कलुषित तथा मलिन करनेवाली कपाय-भावनाएँ शान्त होजायें।
श्रीअजित-जिन-स्तवन
यस्य प्रभावात् त्रिदेव-च्युतस्य क्रीडास्वपि क्षीवमुखाऽरविन्दः । अजेय-शक्ति वि बन्धु-वर्गश्चकार
नामाऽजित इत्यवन्ध्यम् ॥ १॥ * जो देवलोकसे अवतरित हुए थे और इतने प्रभावशाली थे।
कि उनकी क्रीडाओंमें-बाल-लीलाओं में भी उनका बन्धुवर्ग| कुटुम्बसमूह-हर्षोन्मत्त-मुखकमल होजाता था, तथा जिनके माहा
त्म्यसे वह बन्धुवर्ग पृथ्वीपर अजेय-शक्तिका धारक हुआ-उसे । * कोई भी जीत नहीं सका और (इसलिये) उस बन्धुवर्गने जिनका ! 'अजित ऐसा सार्थक अथवा अन्वर्थक नाम रक्खा।' 'न केनचिजीयते (अन्तरंगैर्बाह्य श्च शत्रुभिर्न जीयते वा) इत्यजितः
--प्रभाचन्द्रः
'अतएव अवन्थ्यमन्वयम् ।...