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- समन्तभद्र-भारती
की सत्ता स्वीकार करनेसे उस मतके प्रतिपादकोंके 'मेरी माँ बाँझ' की तरह- । र स्ववचन-विरोध आता है, अर्थात् मत्वाद्वैतवादियोंके द्वैतापत्ति होकर उन.. की अद्वैतता भंग हो जाती है और शून्यतैकान्तवादियोंके प्रमाणका अस्तित्व । | होकर सर्वशून्यता बनी नहीं रहती-~~-विघट जाती है। और प्रमाणका ।
अस्तित्व स्वीकार न करवेसे स्वपक्षका साधन और परपक्षका दूपण बन नहीं सकता--वह निराधार ठहरता है।'
न सर्वथा नित्यमुदेत्यपैति न च क्रिया-कारकमत्र युक्तम् । नैवाऽसतो जन्म सतो न नाशो
दीपस्तुमः पुद्गलभावतोऽस्ति ॥४॥ 'यदि वस्तु सर्वथा-द्रव्य और पर्याय दोनों रूपसे-नित्य हो तो । वह उदय-अस्तको प्राप्त नहीं हो सकती-उसमें उत्तराकारके स्वीकार
रूप उत्पाद और पूर्वाकार के परिहाररूप व्यय नहीं बन सकता। और न । * उसमें क्रिया-कारककी ही योजना बन सकती है-वह न तो चलने
ठहरने जीर्ण होने यादि किसी भी क्रियारूप परिणमन कर सकती है और र न कर्ता-कर्मादिरूपसे किसीका कोई कारक ही बन सकती है-उसे सदा र सर्वथा अटल अपरिवर्तनीय एकरूप रहना होगा, जो असंभव है। (इसी | तरह) जो सर्वथा असत् है उसका कभी जन्म नहीं होता और जो ।
सत् है उसका कभी नाश नहीं होता। (यदि यह कहा जाय कि विद्य! मान दीपकका-दीप-प्रकाशका-तो बुझनेपर अभाव हो जाता है, फिर ।
यह कैसे कहा जाय कि सत्का नाश नहीं होता ?' इसका उत्तर यह है कि) दीपक भी बुझनेपर सर्वथा नाशको प्राप्त नहीं होता, किन्तु उस समय अन्धकाररूप पुद्गल-पर्यायको धारण किये हुए अपना !