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स्वयम्भू-स्तात्र ।
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1 'आपके उस निर्मल चरण-युगलको, जो ( नत-मस्तक हुए)
देवेन्द्रों के मुकटोंकी मणियों और वज़ादिरत्नोंकी किरणों के प्रसारसे उपचुम्बित है, जिसका उदर-पादतल-विकसित कमलदलके समान रक्तवर्ण है और जिसकी अंगुलियोंका उन्नत प्रदेश नखरूप-चन्द्रमाओंकी किरणोंके परिमण्डलसे अति सुन्दर मालूम होता है, वे सुधी महर्षिजन प्रणाम करते हैं जो अपना आत्महित- । साधनमें दत्तचित्त हैं और जिनके मुखपर सदा स्तुति-मन्त्र रहते हैं।'
द्युतिमद्रथाङ्ग-रवि-बिम्बकिरण-जटिलांशुमण्डलः। नील-जलद-जल-राशि-वपुः सह बन्धुभिगेरुडकेतुरीश्वरः ॥शा हलभृच्च ते स्वजनभक्तिमुदित-हृदयौ जनेश्वरौं । धर्म-विनय-रसिको सुतरां
चरणाऽरविन्द-युगलं प्रणेमतुः ॥६॥ 'जिनके शरीरका दीप्तिमण्डल द्युतिको लिए हुए सुदर्शनचक्ररूप रविमण्डलकी किरणोंसे जटिल है-संवलित है-और जिनका शरीर नीले कमल-दलोंकी राशिके समान श्यामवर्ण है उन गमडध्वज-नारायण-और हलधर-बलभद्र-दोनों लोकनायकोंने, जो स्वजनभक्तिसे प्रमुदितचित्त थे और धर्मरूप विनयाचारके। रसिक थे, आपके दोनों चरणकमलोंको बन्धु-जनोंके साथ बार ! बार प्रणाम किया है।'