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योग - माहात्म्य ( ३ )
कितना है योग का माहात्म्य ! बताया नहीं जा सकता। वर्णन की अशक्यता को ध्यान में रखकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया। सम्राट भरत राज्य का संचालन करते रहे, गृहवास नहीं छोड़ा, मुनि नहीं बने। शीश महल में बैठे अपने प्रतिबिम्ब हुए की प्रेक्षा कर रहे थे । प्रेक्षा करते-करते इतने लीन हो गए कि केवली बन गए। यह है योग का माहात्म्य |
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अहो ! योगस्य माहात्म्यं प्राज्यं साम्राज्यमुद्वहन् ।
अवाप
केवलज्ञानं,
भरतो
भरताधिप ।
योगशास्त्र १.१०
Pour the
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६ जनवरी २००६
२७
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