Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 04
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ देसावगासिय 2634 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 4 दोकिरिय सावगासिअउपभोगं पच्चक्खामि" इत्यादिको दृश्यते, परंपारणविधि- भिक्षावृत्तिः। आ०म०१ अ०२ खण्ड। ातो नास्ति, तथा देशावकाशिकमध्ये सामायिकस्य ग्रहणं पारणं च / देहणी-(देशी) पके,देवना०५ वर्ग 48 गाथा। शुद्ध्यति, तेन सह सामायिकग्रहणमपि शुद्ध्यतीति / 427 प्र०। सेन०३ देहदुव्वलदोस-पु०(देहदुर्बलदोष) संहननदुर्बले, पं०चू०। उल्ला देहपरिणाम-पु०(देहपरिणाम) प्रतिविशिष्टायां शरीरशक्ती, आचा० देसाहिवइ-पुं०(देशाऽधिपति) देशाऽऽरक्षिके, देशव्यापृतिकेवा। बृ०४ १श्रु०१ अ०४ उ उ० स्था देहपलोयण-न०(देहप्रलोकन) आदर्शाऽऽदौ देहदर्शन, दश०३अ०। देसि-त्रि०(देशिन्) देशवति, अवयविनि,विशे। देहबल-न०(देहबल) संहननजनिते शरीरसामयें , बृ०३ उ०) देसिक्कदेसविरय-पुं०(देशैक देशविरत) श्रावके, आतु० / षण्णा देहबलिया-स्त्री०(देहबलिका) भिक्षावृत्तौ, आ०म०१ अ०२ खण्डा पृथिव्यादिकायानां षष्ठांशत्वादेशस्त्रसकायव्यपरोपणलक्षणः, तस्यापि देहमाण-त्रि० (प्रेक्षमाण) पश्यति, "दिट्ठोरा देहमाणो देहमाणो चिल्लइ।'' संकल्पजाऽऽरम्भजत्वेन द्विभेदत्वादेकदेशः संकल्पजत्रसविनाशनि भ०६ श०३३ उ०। सूत्रा वृत्तिरूपः पुनस्तस्यापि सापराधीनरपराधभेदद्वयेन द्विप्रकारत्वादत्र / देहली-स्त्री०(देहली) द्वारशाखाप्रोते अधः खण्डे,आ०म०२४०। नरपराधसंकल्पजत्रसजीवविनाशनिवृत्तिरूपो देशैकदेशस्तेन स्वयं देहविभूसा-स्त्री०(देहविभूषा) स्नानाऽऽदिरूपायां देहपरिष्क्रियायाम्, हननघातनाद्विरतो निवृत्तो देशविरतः। आतु बृ०१ उ० देसिगणि-पुं०(देशगणि) स्वनामख्याते आचार्ये , "तत्तो अथिरचरितं, देहविमुक्क-पुं०(दहचिमुक्त) सिद्धे, भ०८ श०२३०। उत्तमसम्मत्तसत्तसंजुत्त / देसिगणिखमासमणं, माढरगुत्तं नमसामि'" / / 1 / / कल्प०२ अधि०८ क्षण। देहव्यावि-पुं०(देहव्यापिन्) शरीरमात्रव्यापके आत्मनि, दश०४ अ०। देहसमाहि-पुं०(देहसमाधि) शरीरसमाधाने, पं०व०४ द्वार। देसितव-त्रि०(देशितवत्) प्रकाशिते, सूत्र० 1 श्रु०६ अ०/ देहसहाव-पुं०(देहस्वभाव) शरीरस्वरूपे, व्य५ उ०। देसिता-अव्य०(देशित्वा) कथयित्वेत्यर्थे, आ०म०१ अ०१ खण्ड। देसिय-पुं०(देशिक) देशनं देशः कथन, सोऽस्यास्तीति देशिकः / गुरो, देहादिणिमित्त-न०(देहाऽऽदिनिमित्त) शरीरगृहपुत्रकलत्रप्रभृत्यर्थे , पञ्चा० 4 विवा उपदेष्टार, आ०म०१ अ०१ खण्ड। विशेषाव्या देशयतीति देशिकः / अप्रयायिनि, आस०५ अ०। बृहत्क्षेत्रव्यापिनि, आचा०२ श्रु०१ चू०१ देहि-पुं०(देहिन्) आत्मनि, सूत्र० 1 श्रु०१ अ० 170 / अ०३ उ०। दो-पुं०(द्वी) "देः दो वे"|||३।११६॥ द्विशब्दस्य प्रथमायां द्विवचने *देशित-त्रि० / उपदिष्टे, कथिते, विशे०। आव०पा०) जी0) संस्कृते-दौ / प्राकृते- 'दो' इति। प्रा०३ पाद। *दैवसिक-त्रि० / दिवसयाते, "देसियं च अईआई. चितिज्ज अणु दोआल-(देशी) वृषभे, देवना० 5 वर्ग 46 गाथा। पुवसो।" उत्त०२६ अ० दोइ-अव्य०(दोइ) 'दो' इति निपातो विकल्पार्थे , 'दोइ सिणेह देसिल्लग-त्रि०(देशीय) देशोद्भवे, बृ०३ उ०। यथा पाण्डुवर्द्धनकम्। नि० ___उवालब्धं / " बृ०३उ०। चू०१६ उ०। दोकिरिय-पुं०(द्वैक्रिय) द्वे क्रिये समुदिते द्विक्रिय, तदधीयते तद्वेदिनो देसीतो-अव्य०(देशीतस्) देशीभाषामाश्रित्येत्यर्थे, बृ०२ उ०। वा द्वैक्रियाः / कालाभेदेन क्रियाद्वयानुभवप्ररूपेषु गङ्गाचार्यप्रवर्तितेषु देसीनाममाला-स्त्री०(देशीनाममाला) देशीभाषानामकोष, रा०। पञ्चमनिहवेषु, स्था०७ ठा०। देसीपोरपमाण-त्रि०(देशीपर्वप्रमाण) अड्गुष्ठपर्वपरिमितमुष्टिप्रमाणे, तद्वक्तव्यतादेशीशब्दस्याऽङ्गुष्ठवाचकत्वात्। व्य०८ उ०। नि०चू०। अट्ठावीसा दो वा-समया 'तइया' सिद्धिं गयस्स वीरस्स। देसीभासा-स्त्री०(देशीभाषा) देशप्रसिद्धाऽपभ्रंशभाषायाम, आ०चू०१ दोकिरियाणं दिट्ठी, उल्लुगतीरे समुप्पन्ना / / 2424 / / अ०। आचा अष्टाविंशत्यधिके द्वे वर्षशते तदा सिद्धिंगतस्य श्रीमन्महावीरस्यात्रान्तरे देसेय-त्रि०(देशैजस्) देशैश्वले (देशैजा देशतश्वलाः) भ० 25 104 उ०। द्वैक्रियनिहवानां दृष्टिरुल्लुकातीरे समुत्पन्नेति // 2424 // देसोहि-पुं०(देशावधि) देशप्रकाशके अवधिज्ञाने, स०। कथं पुनरियमुत्मन्ना? इत्याहदेह-पुं०(देह) दिह' उपचये, देहः / आहारपरिणामजनितोपचये, शरीरे, नइखेडजणवउल्लुग, महागिरि धणगुत्त अजगंगे य। अनु०। उत्त०। आव०। विशे०। प्रव०। आ०चू०। आ०म०। स्था० किरिया दो रायगिहे, महातवोतीरमणिनाए।।२४२५।। पिशाचनामभेदे, प्रज्ञा०१ पद। उल्लु का नाम नदी, तदुपलक्षितो जनपदोऽप्युल्लु का। देहंवलिया-स्त्री०(देहवलिका) अनुस्वारो नैपातिकः / देहबलमित्य- उल्लु कानद्याश्चैक स्मिस्तीरे धूलिप्राकाराऽऽवृतनगरविशेषरूपं स्याऽऽख्याने, ज्ञा०१ श्रु० 16 अ० भिक्षावृत्तौ, देहवलिका नाम | खेटस्थानमासीत्, द्वितीये तु उल्लुकातीर नाम नगरम्, अन्ये त्वा

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