Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 04
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan

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Page 1328
________________ धण 2650 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 4 धण उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता अह धोयमट्टियं गिण्हइ, गिण्हइत्ता पुक्खरिणिं ओगाहेइ, ओगाहेइत्ता जलमज्जणं करेइ, पहाए कयवलिकम्मे०जाव रायगिहं णयरं अणुप्पविसइ / रायगिहस्स णयरस्स मज्झं मज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थगमणाए। तए णं तं धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासित्ता रायगिहे णयरे बहवे णयरणिगमसे ट्ठिसत्थवाहपभिओ आढयंति, पडिजाणंति, सक्कारें ति, सम्माणेति, अम्भुटुंति सरीरकुसलं पुच्छंति / तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता जा विय से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ, तं दास त्ति वा, पेस त्ति वा, भइगा ति वा, भाइल्लेति वा, सा वि य णं धणं सत्थबाहं एजमाणं पासइत्ता पायपडियाए खेमकुसलं पुच्छइ, जे वि य से तत्थ अभिंतरिया परिसा भवइ, तं माया इय वा पिया इय वा भाया ति वा भइणी तिवा,सा विय णं धणं सत्थवाहं एन्जमाणं पासइ, पासइत्ता आसणाओ अब्भुटेइ, कंठाकंठियं अवदासियं वाहप्यमोक्खणं करेइ / तए णं से धणे सत्थवाहे जेणेव भद्दा भारिया तेणेव उवागच्छइ। तए णं सा भद्दा मारिया सत्थवाही धणं सत्थवाहं एज्जमाणं पासइ, पासइत्ता णो आढाति, णो परियाणाइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी तुसिणीया परंमुही संचिट्ठइ / तए णं से धणे सत्थवाह भई भारियं एवं बयासी-कि णं तुमं देवाणुप्पिया ! ण तुट्ठा वा ण हरिसा वा णाणंदी वा, जं मए सेएणं अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पा विमोइए। तए णं सा भद्दा धणं सत्थवाहं एवं बयासी-कह णं देवाणुप्पिया ! मम तुट्ठा वा० जाव आणंदे वा भविस्सइ / जेणं तुम मम पुत्तघायकस्स० जाव पचामित्तस्स ताओ विपुलाओ असणं०४ संविभागं करेसि / तए णं से धणे सत्थबाहे भई सत्थवाहिं एवं बयासी-णो खलु देवाणु-प्पिए! धम्मो ति वा तवो त्ति वा कयपडिकइया वा लोगजत्ता ति वा णायए त्ति वा घाडियए ति वा सहाएइ वा सुहि त्ति वा ततो विपुलाओ असणं०४ संविभाएकए, णण्णत्थ सरीरचिंताए। तए णं सा भद्दा सत्थवाही धणेणं सत्थवाद्देणं एवं वुत्ता समाणी हट्ठतुट्ठा०जाव आसणाओ अब्भुट्टेति, कंठाकंठिअवतासेति,खेमकुसलं पुच्छइ, पुच्छइत्ता बहाया०जाव पायच्छित्ता विपुलाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ।तएणं से विजए तक्करे चारगसालाए तेहिं बंधेहि य वहेहि य कसप्पहारेहि य०जाव तण्हाएहि य छुहाएहि य पराभवमाणे कालमासे कालं किया णरएसुणेरइत्ताए / उववण्णे,से णं तत्थरइए जाए कालेकालाभासे० जाव वेयणं पच्चणुब्भवमाणा विहरति / से णं तओ उव्वट्टित्ता अणाइयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरं तसंसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सइ। एवामेव जंबू ! जेणं अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरियउवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे विपुलमणिमुत्तियधणकणगरयणसारेणं लुब्मइ, से वि य एवं चेव / तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा णाम थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा० जाव पुवाणुपुट्विं चरमाणा०जाव जेणामेव रायगिहे णयरे जेणे व गुणसिलए चेइए०जाय अहापडिरूवं उग्गाहं उगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ / तए णं तस्स धणस्स सत्थवाहस्स बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म इमेयारूवे अब्भत्थिए० जाव समुप्पञ्जित्था। एवं खलु भगवंतो जाइसंपण्णा इहमागया, इह संपण्णा, तं इच्छामि णं थेरे भगवंते वदामि, णमंसामि, पहाएजाव सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिए पायविहारचारेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता वंदइ, णमंसइ / तए णं थेरा भगवंतो धणस्स सत्थवाहस्स विचित्तं धम्ममाइक्खंति / तए णं से धणे सत्थवाहे धम्म सोच्चा एवं बयासी-सदहामि णं भंते ! णिग्गंथे पाययणे० जाव पव्वइएक जाव बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खाइत्ता मासियाए संलेहणाए सहि भत्ताई अणसणाई छेदइत्ता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववण्णे / तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं घणस्स देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / से णं धणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं गइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिहिति० जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति, जहा णं जंबू ! धणेणं सत्थवाहेणं णो धम्मेइ वा० जाव विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असणं०४ संविभागे कए, णण्णत्थ सरीरस्स रक्खणट्ठाए, एवामेव जंबू ! जो णं अम्हं णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा०जाव पव्वइए समाणे ववगयण्हाणुमद्दणपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसिए इमस्स ओरालियसरीरस्स णो वण्णहेउं वारूवहेउवा विसयहेउवातं विपुलं असणं०४ आहारमाहारेइ, णण्णत्थ णाणसणचरित्ताणं वहणट्टयाए, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाण अ अच्चणिज्जे०जाव पज्जुवासणिजे भवइ, परलोए वि य णं

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