Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 04
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan

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Page 1340
________________ धण्ण(ग)य 2662 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 4 धण्णप्पमाण एवामेव धण्णस्स (?) से जहाणामए तरुणगलाओ तिवा तरुणगएलालुय त्ति वा सिल्हलए त्ति वा तरुणएजाव चिट्ठति, एवामेव धण्णस्स अणगारस्स सीसं लुक्खं निम्मंसं अट्ठिचम्मछिरत्ताए पणायंति, नो चेव णं मंससोणियत्ताए, एवं सव्बत्थमेव नवरं उदरभायणा कण्णा जिब्मा ओट्ठा एएसिं अट्ठी न भवति चम्मछिरत्ताए पणाइतं भणंति, धण्णेणं अणगारेणं मुखपायजं धोरुहणादिगतं तम्मिक रालणं क क डाहेणं पिट्ठमंसिएणं उदरभायणेणं वीतिजमाणे हिं पांसुलिकडएहिं अक्खसुत्तमाला विव गणिज्जमाणे हि पिट्ठ करंड गसंधीहिं गंगातरंगभूतेणं उक्खंडगदेसभायणेणं सुक्कसप्पसाणेहिं बाहाहिं सिढिलकडाली बिव लंवंतेहि य अग्गिदहेहिं कंपणाईओ बिब वेयमाणीए सीसघडीए पञ्चातवदन-कमले ओज्झगधडामुहे ओछट्ठणयकोले जीवंजीवेणं गच्छंति जीवंजीवेणं चिटुंति, भासं भासिस्सामि, विगलाइ से जहानामए इंगालसगडियाति वा जहा खंदओ तहा०जाव हुतासणाइभासरासिपालिछिण्णे तवेण तए णं तवतेयं सिरीसउव्व सोभेमाणे सोभेमाणे चिट्ठति / तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिले चेइए सेणिए राया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा निग्गया, सेणिओ निग्गओ, धम्मकहा, परिसा निग्गया तए णं से सेणिए राया समणस्स०अंतिए धम्मं सोचा निसम्म समणं भगवं वंदति, नमसति, नमसतित्ता एवं बयासी-इमेसिणं भंते! इंदभूतिपामोक्खाणं चउदसण्हं समणसाहस्सीणं कयरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जराए चेव? एवं खलु सेणिया ! इमासिं इंदभूतिपामोक्खाणं चउदसण्हं समणसाहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जराए चेव / से केसि णं भंते ! एवं बुचति-इमासिं०जाव साहस्सीणं धण्णे णं अणगारे णं महादुकरकारए चेव महानिराए चेव? एवं खलु सेणिया ! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदीनामं नयरी होत्था; उप्पिं पासायवडिंसए विहरति / तते णं अहं अण्णया कयाइ पुटवाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव काकंदी नयरी जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागए अहापडिरूवं उग्गहं संजमेणं जाव विहरामि,परिसा निग्गया तहेव०जाव पव्वतितेजाव विलमिव जाव अहारेति / धण्णस्स णं अनगारस्स पदाइसरीरवण्णतो सव्वोजाव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठति, से तेणट्टेणं सेणिया! एवं वुचति-इमासिं च चउद्दससहस्साणं धम्मे अणगारे महादुकरकारए महानिज्जराए चेव / तते णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ अंतिए एअमटुं सोचा निसम्म हट्टतुट्ठ० समणं भगवं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, करेतित्ता वंदति, नमसति, णमंसित्ता जेणेव धण्णे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता धण्णं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, वंदति, नमसति, णमंसित्ता एवं बयासी-धण्णेसि णं तुमं देवाणुप्पिए ! संपुण्णे सुकयत्थे कंतलक्खणे सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफले त्ति कटु वंदति, नमसति, णमंसतित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता समणं भगवं तिक्खुत्तो वंदति, नमसति, णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए / तते णं तस्स धण्णस्स अणगारस्स अण्णया कयाइ पुटवरत्तावरत्तकालसमयं सि धम्मजागरियं जागरमाणे इमेयारूवे अब्भत्थिए-एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं जहा खंदओ तहेव चिंता आपुच्छणं थेरेहि सद्धिं विपुलं दुरूहति मासियाए संलेहणाए नवमासपरियाओ०जाव कालमासे कालं किच्चा उढेचंदिम० जाव नवगेविजयविमाणपत्थ डे उडं दूरं वीतीवयति, वीतीवतित्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे थेरा तहेव उत्तरंतिजाव इमीसे आयारभंडे ति भंते त्ति भगवं गोयमे तहेवपुच्छति, पुच्छतित्ता जहा खंदयस्स भगवं वागरेति०जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे उववण्णे / धण्णस्स णं भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोवमा ठिती पण्णत्ता। से णं भंते ! ततो देवलोगाओ कहिं गच्छहिति० कहिं सिज्झिहिति? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति०५, एवं खलु जंबू ! समणेणं० जाव संपत्तेणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते / अणु०३ वर्ग१ अ०। *धान्यक-न० / कुस्तुम्भरीनामके धान्यभेदे, दश०६अ०। धण्णगर-न०(धान्यकर) स्वनामख्याते पुरे, यत्र विमलजिनेन प्रथमभिक्षा लब्धेति। आ०म०१ अ०१ खण्ड। धण्णजक्ख-पुं०(धन्ययक्ष) ऋषभपुरस्थकरण्डकोद्यानस्थ यक्षे, विपा० 2 श्रु०२ अ०। (तत्कथा 'भद्दणंदि' शब्दे वक्ष्यते) धण्णणिहि-पुं०(धान्यनिधि) कोष्ठागारे लौकिके निधिभेदे स्था०५ ठा०३उ० धण्णपत्थय-न०(धान्यप्रस्थक) धान्यमानविशेषे, व्य०१ उ०। घण्णपिडक-न०(धान्यपिटक) धान्यप्रस्थके, व्य०१ उ०) धण्णपुंजियसमाणा-स्त्री०(पुञ्जितधान्यसमाना) खले लूनपूतविशुद्धपुजीकृतधान्यसमाना सकलातिचारकचवरविरहेण लब्धस्वस्वभावत्वात् पुञ्जितस्य धान्यविशेषणस्य परनिपातः प्राकृतत्वात (स्था०) प्रव्रज्याभेदे, स्था०४ ठा०४ उ० धण्णप्पमाण-न०(धान्यप्रमाण) मानमये प्रमाणं, धान्यविषयं मानं प्रमाणं धान्यप्रमाणम् / मानप्रमाणभेदे, अनु०। (धान्यप्रमाणं 'माण' शब्दे वक्ष्यते)

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