Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 04
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
View full book text
________________ 2644 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 4 धण धकार तितेजितेऽग्निसंयोगेन शोधिते रजतपत्रके, "धंतधोयरुप्पपट्टेइ वा" जी०४ प्रति०४ उ०) जंग धंतधोयरुप्पपट्टअंकसंखचंदकुंदसालिपिट्ठरासिसमप्पभ-त्रि० (ध्मातधौतरूप्यपट्टा कशङ्खचन्द्रकुन्दशालिपिष्टराशिसमप्रभ) ध्मात धौतरूप्यपट्टाङ्कशङ्खचन्द्रकुन्दशालिपिष्टराशिसदृशप्रभे, ज्ञा०१ श्रु०१० ध-पुं०(ध) धे-धा-वा डः / धर्मे, कुवेरे, ब्रह्मणि, गुह्ये, गुह्य के; प्रवरे, वहौ, वादे, देशभेदे, उपरिभागे, इन्द्रेभकुम्भे, धन्वतरौ, ध्वनौ, विशेषे धंधा-(देशी) लज्जायाम्,देवना०५ वर्ग 57 गाथा। निनादे, शशिनि च। षण्ढे, पारुष्ये,धूनने,खड्ने, सामर्थ्य , धने, धान्ये धंसण-न०(ध्वंसन) भंशे, "धंसेइ जो अभूएणं / ' ध्वंसयति मायया च। न०। आधारभूते, धायके, भृते, भीते च। त्रिका भ्रंशयतीति / स०३० सम०। अपनयने, “सउणी जह पंसुगुंठिया, "धो विधाता धनं धर्मो, धो गुह्ये गुह्यके स्वरे। विहुणियधसइ ईसियरयं।" ध्वंसयत्यपनयतीति। सूत्र०१ श्रु०२ अ०१ उ०। अधः पतने, गमने, नाशे च, वाच०। धश्च स्वाधारभूतेऽपि, वहौ वादे च धायके॥ धंसाड-मुच त्यागे, तु०-मुचादि०-उभ०-सक०-अनिट्। "मुचेश्छदेशभेदे भृते भीते, धस्तथोपरि वर्तते। ड्डावहेड-मेल्लोस्सिक-रेअव-णिल्लुञ्छ-धंसाडाः" ||8|4|1|| धचषधपारुष्ये "एका इति सूत्रेण मुञ्चतेधसाडाऽऽदेशः। 'धंसाडइ।' पक्षे- 'मुअइ।' प्रा०४ "धः पुंसीन्द्रभकुम्भे स्याद्, धन्वन्तरि तथा द्वयोः / पाद! मुञ्चति, अमुचत्। वाचका स्याद्ध्वनौ च विशेषे च, निनादशशिधातृषु // 50 // धंसाडिअ-(देशी) व्यपगते, दे०ना०५ वर्ग ५६गाथा। क्लीवे तुधंधूनने च, खङ्गसामर्थ्यदन्तिषु / घअ-(देशी) पुरुषे,दे०ना०५ वर्ग 57 गाथा। ध्ये ॥५१॥"एका धगधगंत-त्रि०(धगधगायमान) जाज्वल्यमाने, "धगधगंतसंदुद्धधंखाहरण-न०(ध्वाड् क्षोदाहरण) काकदृष्टान्ते, "धंखाहरणेण एणं / ' ज्ञा०१ श्रु०१ अ०। 'पजलंति जत्थ धगधग-धगस्स गुरुणा वि विण्णेया।' ध्वाक्षोदाहरणेन काकज्ञातेन / पञ्चा० 12 विव०। चोइए सीसा।" (धगधगधगस्स त्ति) अनुकरणशब्दोऽयम् / धगधगिति (तत्स्वरूपं 'गुरुकुलवास' शब्दे तृ० भा०६३६ पृष्ठे दर्शितम्) धगधगायमानं यथा स्यात्तथेत्यर्थः / प्राकृतत्वाश्चैवं प्रयोगः। ग०२ अधिक धंग-(देशी) भ्रमरार्थे , देवना०५ वर्ग 57 गाथा। धगधगाइय-त्रि०(धगधगायित) धगधगिति कुर्वति, "धगधगाइयघंत-(देशी) अतिशये, "धंतं पि दुद्धकंखी, न लभइ दुद्धं अधेणूओ।" जलंतजालुज्जलाभिराम।" कल्प० 1 अधि०३ क्षण। व्याख्या--(धंतं पि त्ति) देशीवचनत्वादतिशयेनाऽपि दुग्धकाक्षी, न घट्ठज्जुण-पुं०(धृषधुम्र) धृष्टं प्रगल्भं द्युम्नं बलं यस्य / 'धृष्टद्युम्ने लभते दुग्धमधेनोः सकाशादिति। बृ० १उ०। जः" ||82 / 64 // इति प्राकृतसूत्रेण णस्य न द्वित्वम् / प्रा०२ *ध्वान्त-न०। ध्वन-क्तः / अन्धकारे, वाच०। पाद! द्रुपदराजपुत्रे, वाचा *ध्मात-त्रि०ा ध्मा-क्तः। दग्धे, आ०म० १अ० 2 खण्ड। विशे० धडिया-स्त्री०(धटिका) "मणैर्दशभिरेका च, धटिका कथिता बुधैः। अग्निसम्पर्केण निर्मलीकृते, आ०म०१ अ०१ खण्ड। जी० नं०रा० इत्युक्तलक्षणे दशमणाऽऽत्मके मानविशेषे, तं०। कल्प। अग्निना तापिते च। औ० शब्दिते, पिं०ा दीर्घश्वासहेतुकशब्दयुक्ते च। *धण-धा०(धण) ध्वाने, भ्वादि०-पर०-सक०-सेट् धणति / वाच०। अग्निसंयोगे, जी०३ प्रति०४ उ०। जं०। ज्ञा०ा 'मा' अधाणीत् / अधणीत् / वाचा शब्दाग्निसंयोगयोरिति वचनात्। आ०म०१ अ० २खण्ड। *ध्रण-धा० / ध्वाने, भ्वादिO--पर-अकo-सेट् / ध्रणति। अध्रणीत्। घंतघोयकणगरुअगसरिसप्पभ-त्रि०(ध्यातधौतकनकरुचकसदृ- अध्राणीत् / वाच०। शप्रभ) ध्यातमग्निना तापितं धौत जलेन क्षालितं यत्कनकं तस्य यो *ध्वण-धा०। ध्वाने, भ्वादि०-पर-अक०-सेट् ध्वणति, अध्याणीत्। रुचको वर्णस्तत्सदृशप्रभः / गौराङ्गे, औ०। अध्वणीत्। वाच०। धंतधोयरुप्पपट्ट-न०(ध्मातधौतरूप्यपट्ट) ध्मातोऽग्निसम्पर्केण *ध्वन-धा० शब्दे, चुरा०-उभ०-सक० सेट् / ध्वनयति / अदिनिर्मलीकृतो धौतो भूतिखरण्टितहस्तसंमार्जनेनातितेजितो रूप्यमयः ध्वनत् / अध्वनयीत् / वाचा ध्वन-घञ् / शब्दे,पुं०। वाच०। रवे, पट्टः विशदीकृतो यो रूप्यपट्टो रजतपत्रम्। जी०४ प्रति४उ०। विशदीकृतो भ्वादि०-पर--अक० सेट् / वा-घटादिः। ध्वनति / अध्वानीत् / यो रूप्यपट्टो रजतपत्रक सध्भातधौतरूप्यपट्टः / रा०ा अन्ये तुव्याचक्ष- अध्वनीत्। ध्वनयति। ध्यानयति। वाच०। तेध्मातोऽग्निसंयोगेन यो धौतः शोधितो रूप्यपट्टः सध्मातधौतरूप्यपट्टः।। *धन-धा० धान्योत्पादने, जुहो०-पर०-अक०-सेट् / दधन्ति, राधा ज्ञा० अग्निसम्पर्केण निर्मलीकृते भृतिखरण्टितहस्तसंमार्जनेना- अधानीत्। अधनीत्।वाचा रय, भ्वादि०-पर०-अक०-सेट्ाधनति।

Page Navigation
1 ... 1320 1321 1322 1323 1324 1325 1326 1327 1328 1329 1330 1331 1332 1333 1334 1335 1336 1337 1338 1339 1340 1341 1342 1343 1344 1345 1346 1347 1348 1349 1350 1351 1352 1353 1354 1355 1356 1357 1358 1359 1360 1361 1362 1363 1364 1365 1366 1367 1368 1369 1370 1371 1372 1373 1374 1375 1376 1377 1378 1379 1380 1381 1382 1383 1384 1385 1386 1387 1388 1389 1390 1391 1392 1393 1394 1395 1396 1397 1398 1399 1400 1401 1402 1403 1404 1405 1406 1407 1408 1409 1410 1411 1412 1413 1414 1415 1416 1417 1418 1419 1420 1421 1422 1423 1424 1425 1426 1427 1428 1429 1430 1431 1432 1433 1434 1435 1436 1437 1438 1439 1440 1441 1442 1443 1444 1445 1446 1447 1448 1449 1450 1451 1452 1453 1454 1455 1456