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(छब्बीस)
२३. इन्द्रियों के उपशमन का लाभ । २४. उपवास और आहार-दोनों क्यों? २५. अहिंसा धर्म घोर क्यों? २६. कौन-सा तप विहित है ?
२७. प्रतिसंलीनता की परिभाषा। २८-३१. आभ्यन्तर तप के प्रकार।
३२. स्वाध्याय के पांच प्रकार ।
३३. ध्यान । ३४-४१. धर्मध्यान के चार प्रकार और उनका लाभ । ४२-४ . शुक्लध्यान ।
४४. छद्मस्थ के ध्यान का कालमान । ४५. ध्यान के चार अंगों की व्याख्या ।
४६. व्युत्सर्ग तप का निदर्शन। ४७-४६. बारह भावनायें।
५०. चार भावनायें। ५१-५५. भावनायोग की निष्पत्ति।
५६. योग का अधिकारी कौन ? ५७-५८. सम्यकदृष्टि के लक्षण ।
५६. योगी की अवस्था । ६०-६१. तत्वत्रयी।
६२. मेघ के मन की आशंका । ६३. समाधान । ६४. चित्त आवृत, प्रतिहत और मूढ़ क्यों? ६५. समाधान। ६६. पाप का प्रत्याख्यान । ६७. आत्मलीन होने का उपदेश ।
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अध्याय १३
साध्य-साधन-संज्ञान (श्लोक ३६) १. साध्य और साधन की जिज्ञासा । २. रुचि की भिन्नता से साध्य भिन्न । ३-६. साध्य के लिये कौन प्रयत्न नहीं करता?
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