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३५. समाधि का अधिकारी ।
३६. असंवृत व्यक्ति की मनोदशा ।
३७. सुख-दुःख बोधि- अबोधि द्वारा कृत ।
३८. हिंसा के परिणाम और द्रष्टा बनने का उपदेश ।
३६. मूढ कौन ?
४०. सत्य को देखना ही देखना है ।
४१. पाप से बचो ।
४२. आत्म-बल की क्षीणता का कारण ।
४३. धर्म के प्रति ग्लानि क्यों, एक जिज्ञासा । ४४. धर्म की वृद्धि कब ? ४५. धर्म की हानि कब ?
४६-४८. कोरा क्रियाकाण्ड धर्म नहीं । ४६. धर्म की क्षीणता कब ?
अध्याय १२
हेय - उपादेय-बोध ( श्लोक ६७ )
१. हेय, उपादेय और ज्ञेय की जिज्ञासा ।
२- ४. ज्ञेयदृष्टि का निरूपण ।
५. हेय दृष्टि का निरूपण ।
६. उपादेयदृष्टि का निरूपण । ७-६. योग क्या है ?
१०-१२. बाह्य तप के प्रकार ।
१३. धर्म में कष्ट सहन क्यों, एक जिज्ञासा ।
१४. धर्म को जानो ।
२१. शरीर का योग-क्षेम करणीय क्यों ?
२२. देह का सन्तुलन ।
१५. धर्म शरीर को सताने के लिये नहीं, सत्य की उपलब्धि के लिये ।
१६. अहिंसक चेतना का विकास ।
१७. विषय भोग अच्छे लगते हैं, क्यों ?
१८. आत्मसाम्य और अहिंसा ।
१६. शरीर केवल शरीर है । २०. शरीर को कृश क्यों ?
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( पचीस )
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