Book Title: Adhyatma Rahasya
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ १० अध्यात्म - रहस्य के अनुभवका निचोड़ जान पड़ती है। मैं तो समझता शारीने इसे लिखकर अपने विशाल 'धर्मामृत' नामक ग्रन्थ-प्रासाद पर एक मनोहर सुवर्ण कलश चढ़ा दिया है । और इस दृष्टिसे यह उस ग्रन्थके साथ मी अगले संस्करणोंमें प्रकाशित होनी चाहिये। मुझे इस ग्रन्थको देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई और साथ ही इसके अनुवादादिककी भावना भी जागृत हो उठी। उसी के फलस्वरूप यह ग्रन्थ अपने वर्तमानरूपमें पाठकोंके सामने उपस्थित है। यहाँ पर एक बात खास तौरसे ध्यानमें लेनेकी है और वह यह है कि ग्रन्थके उक्त समाप्ति-सूचक पुष्पिका-वाक्यमें धर्मामृत गून्यको, जिसके १८ वें अध्यायके रूपमें प्रस्तुत ग्रन्थ प्रथमतः निर्मित हुआ है, 'सूक्तिसंग्रह' विशेपणके साथ उन्लेखित किया है। धर्मामृत मूलका यह विशेषण नया ही प्रकाशमें आया है और वह बहुत कुछ सार्थक जान पड़ता है। उसका यह आशय कदापि नहीं कि ग्रन्थ में दूसरे विद्वानोंकी - आचार्यादि-प्रमाण-पुरुषोंकीसूक्तियोंका शब्दशः संग्रह किया गया है; बल्कि वह प्रायः अर्थशः उन सूक्तियोंके संग्रहका द्योतक है— कहीं कहीं विपयके प्रतिपादिनादिकी दृष्टिसे श्रावश्यक शब्दोंका संग्रह हो जाना भी स्वाभाविक है, और इसीलिये यहाँ अर्थशः के पूर्व 'प्राय:' शब्दका प्रयोग किया गया है। स्वयं ग्रन्थ

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